काशी करेगा उत्तराखंड में संस्कृत के प्रसार की अगुवाई, उत्तराखंड के राज्यमंत्री बोले, भारत का गौरव हैं संस्कृत और यह विश्वविद्यालय
बोले, डॉ. धन सिंह रावत, संस्कृत विश्वविद्यालय के मार्गदर्शन से उत्तराखंड में होगा संस्कृत का प्रसार
मनोज कुमार
वाराणसी। उत्तराखंड में संस्कृत के प्रचार-प्रसार की अगुवाई अब काशी करेगा। यहां के विद्वान न सिर्फ वहां के छात्रों को संस्कृत पढ़ायेंगे, बल्कि उनको ज्योतिष, वेदांत और अनुष्ठान जैसे विषयों पर प्रशिक्षित भी करेंगे। प्रकांड विद्वानों की तपस्थली रही काशी संस्कृत के प्रसार में अहम भूमिका निभाने का कार्य करेगी और उत्तराखंड में संस्कृत के उत्थान में राज्य सरकार का मार्गदर्शन करेगा। संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स उतराखंड के छात्रों को संस्कृत के गूढ़ रहस्यों को बतलाते हुए उसकी लौलिकता से परिचित कराने का कार्य करेंगे। उतराखंड के उच्च शिक्षा सहकारिता और दुग्ध विकास राज्यमंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने बुधवार को सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का दौरा किया।
देववाणी संस्कृत देवभूमि उत्तराखंड की दूसरी राजभाषा है। ऐसे में वहां की सरकार संस्कृत को जन-जन तक पहुंचाने और उसके प्रचार-प्रसार के लिए लगातार कार्य कर रही है। विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में शुमार संस्कृत को प्रसार के लिए उतराखंड सरकार के इस कार्य में अब सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय उनका मार्गदर्शन करेगा। इस दौरे के दौरान डॉ. रावत ने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ला सहित ज्योतिष, वेदांत, अनुष्ठान, तुलनात्मक धर्मदर्शन सहित अन्य प्रोफेसरों से मुलाकात कर उनसे विस्तृत चर्चा की।
जनसंदेश टाइम्स से विशेष चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि उतराखंड सरकार अन्तर्राज्यीय शिक्षा कार्यक्रम चला रही है। जिसके तहत उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों को दोनों प्रदेशों के अच्छे प्रोफेर्सस आॅनलाइन शिक्षा देने का कार्य करेंगे। उन्होंने बताया कि हमारी सरकार की मंशा है कि संस्कृत को उसका पुराना वैभव लौटाया जाये। संस्कृत दुनिया की उन भाषाओं में शुमार है, जिसकी उत्पत्ति का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। एक ऐसी भाषा जो आदिकाल से ही ऋषि-मुनियों की लौलिक भाषा होने के साथ-साथ दैविय शक्तियों से आच्छादित और उर्जा से भरी भाषा मानी जाती है। ऐसी भाषा का दिनों दिन लोप होना हमारी पुरातन गौरवशाली परंपरा को गहरा आघात होगा।
उन्होंने बताया कि संस्कृति की समृद्धता को बचाने और उसको संरक्षित करने के लिए उतराखंड सरकार लगातार कार्य कर रही है। राज्य में दूसरी राजभाषा के रूप में जानी जाने वाली संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रोफेर्सस से मुलाकात की और इस गौरवशाली विश्वविद्यालय का अवलोकन किया, उन्होंने बताया कि यह उनका पहला दौरा है, वें दोबारा इस विश्वविद्यालय में आयेंगे और विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा करेंगे।
प्राचीनतम पाण्डुलिपियों को देख हुए चकित
दौरे के दौरान उतराखंड के राज्यमंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने विश्वविद्यालय का निरीक्षण भी किया। जहां विश्वविद्यालय की गौरवशाली की इतिहास को देख वें आश्चर्यचकित नजर आये। सबसे पहले कुलपति के साथ वेधशाला पहुंचे, जहां महर्षि वाल्मिकी द्वारा रामायण की रचना की गई थी। इस स्थान के बारे में कुलपति ने उन्हें विभिन्न जानकाररियां दी। इसके बाद प्राचीन सरस्वती पुस्तकालय पहुंचे। जहां पर 700-800 साल पुरानी पाण्डुलिपियों को देख आश्चर्यचकित नजर आये। पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने उन्हें प्राचीन पाण्डुलिपियों के बारे में बताया और पाली भाषा लिखी वाल्मिकी रामायण, दुर्गासप्तसती सहित अन्य ग्रंथ दिखाये।
‘दृक्सिद्ध’ पंचांग का विमोचन
उतराखंड सरकार के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कुलपति कार्यालय में ज्योतिष विभाग द्वारा संचालित ‘श्रीमद् बापू देव शास्त्री दृक्सिद्ध पंचांग’ संवत 2078 का विमोचन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि आज मेरे जीवन का यह प्रहर सार्थक हो रहा है। यहां से 145 वर्षों से प्रकाशित पंचांग जिसका विमोचन हुआ है। यह देश को वैदिक दृष्टि में राह प्रशस्त करता है। कुलपति प्रोफेसर राजाराम शुक्ल ने कहा कि विगत 145 वर्षों से प्रकाशित हो रहे पंचांग की विशेषतायें वृहद् हैं जो की अन्य पंचांगो से भिन्न और अद्भुत है।
इस मौके पर ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष एव पंचांग के सम्पादक प्रो. अमित कुमार शुक्ल, आचार्य महेंद्र पाण्डेय, प्रोफेसर महेंद्र पांडेय, प्रो. रमेश प्रसाद, प्रो. राम पूजन पांडेय, प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी, प्रो. सुधाकर मिश्र, चीफ प्रॉक्टर प्रो. आशुतोष मिश्र, डॉ. मधुसूदन मिश्र, डॉ. राजा पाठक तथा अन्य विभागों के आचार्य उपस्थित रहे।