बनारस के रामेश्वर में बन रहा देश का पहला मॉडल डब्ल्यूएसपी, काम शुरु, ...पानी का दोबारा होगा उपयोग
जिले के गांवों में ग्रे वॉटर के तरल अपशिष्ट प्रबंधन की कवायद
गांवों में आसपास तीन-तीन तालाब खोदकर करेंगे पानी का शोधन
- लखनऊ के प्रशिक्षकों ने शुरु की तीन ब्लॉकों के सचिवों की ट्रेनिंग
- वर्तमान में जनपद के 29 गांवों में इस परियोजना पर चल रहा काम
सुरोजीत चैटर्जी
वाराणसी। देश के ग्रामीण इलाकों में तरल अपशिष्ट प्रबंधन का पहला मॉडल जनपद के रामेश्वर गांव में बनेगा। इसके लिए तालाब तैयार करने का काम शुरु हो चुका है। यह परियोजना मूर्त रूप लेने के बाद जिले के अन्य गांवों समेत देश में यूपी समेत अन्य राज्यों में इसे नजीर के तौर पर लागू कराएंगे। जिसके आरंभिक चरण में वाराणसी के सेवापुरी, काशी विद्यापीठ और आराजी लाइन विकास खंडों के चिह्नित गांवों के सचिवों को प्रशिक्षण देने का कार्य सोमवार को आरंभ हो गया। ऐसी ही ट्रेनिंग सूबे के कुछ अन्य जनपदों में भी दी जा रही है।
काशी विद्यापीठ ब्लॉक के नैपुराकलां और छितौनीकोट में लाखों रुपये खर्च कर शुरु किये गये सॉलिड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट के दोनों प्लांट असफल होने के बाद शासन ने अब ग्रामीण इलाकों में रसोई, स्रानागार, गौशाला, हैंडपंप और खेत आदि से निकलने वाले अप्रयोज्य गंदे पानी (ग्रे वॉटर) का शोधन के लिए यह पहल शुरु की है। इसे वेस्ट इस्टेबलाइजेशन पॉन्ड (डब्ल्यूएसपी) नाम दिया गया है। जिसके तहत एक-दूसरे से सटे हुए तीन आकार के तालाब खोदकर उनमें गांव का गंदा पानी एकत्र करने के बाद शोधित करेंगे। ताकि उसका दोबारा उपयोग संभव हो।
देश में पहली बार ऐसा प्रयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के रामेश्वर गांव में करते हुए मॉडल तैयार किया जा रहा है। प्रोजेक्ट के अंतर्गत तीन आकार के तालाब बनाए जा रहे हैं। उनमें एक बड़े अकार का और अन्य दो क्रमशरू एक-दूसरे से छोटा तालाब। सबसे बड़े तालाब में गंदे पानी को एकत्र कर उसमें बैक्टीरिया पनपते तक रखने के बाद अन्य दोनों तालाबों में उस पानी की यही प्रक्रिया अपनाकर शोधित कर पुनरू उपयोग के लिए तैयार करेंगे।
इस परियोजना में शौचालय के गंदे पानी (ब्लैक वॉटर) को नहीं लिया जाएगा। दूसरी ओर, ठोस कचरों को डस्टबिन आदि में एकत्र कर उन्हें अन्य प्रयोग में लाया जाएगा। रामेश्वर में मॉडल डब्ल्यूएसपी को अमली जामा पहनाने के लिए तालाब की खोदाई का कार्य आरंभ कर दिया गया है। दूसरी ओर, सेवापुरी विकास खंज के छतेरीमानापुर, नेवड़िया, बेलवां, खरगूपुर, पचवार समेत 19 गांव और काशी विद्यापीठ एवं आराजी लाइन ब्लॉक के 5-5 गांवों में ऐसी की परियोजना को मूर्त रूप देंगे।
एडीपीआरओ राजेश यादव ने बताया कि चिह्नित प्रत्येक गांव में इन तालाबों के निर्माण में प्रति प्रोजेक्ट औसतन 8.17 लाख रुपये की लागत तय की गयी है। स्वच्छ भारत मिशन का प्रथम चरण पूर्ण होने के बाद एसबीएम के दूसरे चरण में यह कवायद हो रही है। इन तीनों विकास खंडों के चयनित गांवों में प्रोजेक्ट को मूर्त रूप देने के उद्देश्य से वहां से सचिवों की ट्रेनिंग सोमवार को विकास भवन सभागार में आरंभ हुई। क्षेत्रीय नगरीय एवं पर्यावरण अध्ययन केंद्र लखनऊ के अनिल शर्मा, रोहित कुमार और वीरेंद्र यादव यह प्रशिक्षण दे रहे हैं। आयोजन में डीपीआरओ शश्वत आनंद सिंह, मोईन अंसारी, रमेश दुबे, अंशुमान सौरभ व रजनीश आदि का सहयोग है।
जमीन की उपलब्धता बड़ी समस्या
- तरल अपशिष्ट प्रबंधन (डब्ल्यूएसपी) को लेकर जनपद के रामेश्वर गांव में मॉडल प्रोजेक्ट भले ही तैयार हो रहा हो लेकिन तमाम गांवों में इस परियोजना को अमलीजामा पहनाने के लिए जमीन की उपलब्ध का का संकट है। सोमवार को विकास भवन सभागार में आरंभ हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान सचिवों ने ट्रेनरों के सामने यह समस्या रखी। मौके पर एडीपीआरओ राजेश यादव ने भी इसकी पुष्टि की। वहीं, प्रशिक्षक अनिल शर्मा ने कहा कि वाराणसी के विभिन्न गांवों में डब्ल्यूएसपी के लिए भूमि का अभाव है। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत होने के बाद अब आमलोग साफ-सफाई का महत्व समझने लगे हैं। फलस्वरूप कचरा प्रबंधन जैसी परियोजनाओं को महत्व मिलने लगा है।
आधुनिकीकरण से बढ़ा पानी का खर्च
समाज में आधुनिकता बढ़ने के साथ ही पानी के उपयोग की मात्रा भी बढ़ती जा रही है। लगातार गिरते भूगर्भ जलस्तर को लेकर बढ़ती चिंता के बीच पानी के उपयोग में वृद्धि को रोकना मुश्किल होता जा रहा है। क्षेत्रीय नगरीय एवं पर्यावरण अध्ययन केंद्र लखनऊ से आए प्रशिक्षक अनिल शर्मा ने सोमवार को एक बातचीत में यह कहा। उन्होंने बताया कि शैचालय में फ्लश का प्रयोग, किचन में सिंक का उपयोग, घर-घर में मिनी आरओ प्लांट वगैरह इसके उदाहरण हैं। श्री शर्मा ने बताया कि एक सर्वे के मुताबिक वाराणसी के शहरी क्षेत्र में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति पानी का खर्च 135 लीटर है। जबकि ग्रामीण इलाकों में क्षेत्रवार ट्यूबवेल अधिक होने पर यह आंकड़ा प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 100 से 110 लीटर, हैंपपंप उपलब्धता की स्थिति में 70 से 80 लीटर आंकी गयी है।
जीआईएस मैप से होगा समाधान
जनपद के ग्रामीण इलाकों में तैयार किये जा रहे जीआईएस मैपिंग का कार्य पूर्ण होने के बाद कहां-कहां किस व्यक्ति की कितनी जमीन है और सरकारी भूमि कितने क्षेत्रफल में है, यह स्पष्ट हो जाएगा। इससे राजस्व विभाग को भूमि विवाद जैसे प्रकरणों में समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। क्षेत्रीय नगरीय एवं पर्यावरण अध्ययन केंद्र लखनऊ के अनिल शर्मा ने सोमवार को एक बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सेवापुरी ब्लॉक के ठठरा, रामेश्वर, हाथी, करधना और महंगीपुर में मैपिंग का यह कार्य पूर्ण हो चुका है।