लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में उमड़ा आस्थावानों का रेला, चतुर्यमास महायज्ञ का विधिपूर्वक पूर्णाहुति
गोपालापुर में बहती रही भक्ति रस की गंगा
प्यारेलाल यादव
चिरईगांव। जगतगुरु त्रिदंडी स्वामी जी के पादु शिष्य जीयर प्रपन्न जी महाराज के सानिध्य में चतुर्यमास बर्थराकला (गोपालापुर) चल रही महायज्ञ का विधिपूर्वक सम्पन्न हो गया। बीते 27 नवम्बर को कलश यात्रा के साथ पच्चीस कुंडीय महायज्ञ का विधिवत शुभारम्भ किया गया था। गोपालापुर यज्ञ स्थल पर श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के आज पांचवे दिन आस्थावानों का रेला उमड़ पड़ा। भक्तों ने यज्ञ मंडप का परिक्रमा कर यज्ञ का महाप्रसाद लिया। तथा देश के कोने-कोने से आए संतों द्वारा किए गए हरि चर्चा का रसपान किया।
पच्चीस कुंडीय महायज्ञ के पांचवे दिन श्री मारुती किंकर जी महाराज, आचार्य श्री रत्नेश जी महाराज तथा श्री पुंडरीक स्वामी जी महाराज द्वारा की गई। हरि चर्चा कर भक्ति रस की ऐसी गंगा बहाई की भक्त भाव विभोर हो गए। सभी लोगों के लिए भव्य भंडारे की व्यवस्था की गई है। जिसमें महिला तथा पुरुष अलग-अलग भोजनालय में महाप्रसाद पाकर प्रफुल्लित दिखे। यज्ञ समिति के काफी संख्या में लोग उत्साह पूर्वक लगे रहे। काफी संख्या में जुटे साधु संतों की विदाई के साथ और यज्ञ मंडप में अंतिम आहुति एवं भव्य भंडारे के श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ की पूर्णाहुति दी गई। उक्त मौके पर पूरा क्षेत्र जयकारों से गूँज उठा।
श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के परम शिष्य श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने अपने वाणी की अमृत वर्षा करते हुए कहा कि नव कल्याण का सहज उपाय प्रभु का स्मरण है। मानव कल्याण के लिए सबसे सहज और सरल उपाय परमात्मा के श्रीचरणों में चिन्तन है। जिस अवस्था में जिस व्यवस्था में रहे प्रभु का स्मरण, चिन्तन एवं ध्यान निरन्तर करते रहना चाहिये। शास्त्र में बताया गया है कि दान, तप और ध्यान आत्मा के उद्धार व कल्याण का प्रमुख साधन है। मनुष्य को अपनी मृत्यु को याद करते हुये बचपन, जवानी एवं बुढ़ापा में भगवान का चिन्तन मनन और उनके गुणों का श्रवण हर पल हर क्षण करते रहना चाहिए। शास्त्र में कहा गया है साधक को संकट आने पर, मृत्यु निकट आने पर या अन्त समय आने पर घबराना नहीं चाहिए।
भगवान प्रभु नारायण के नाम या (ऊँ) जप करते हुये शेष जीवन को बिताए एवं स्मरण करें। भगवान के स्वरुप का स्मरण करे। वेद शास्त्र में बताया गया है कि भगवान के श्रेष्ठ स्वरूप में (चतुर्भुज) स्वरूप एक है। स्वामी जी ने इस गूढ़ रहस्य को बताया कि चतुर्भुज का मतलब चार भुजा वाला स्वरूप जिसमें (शंख, चक्र, गदा, पद्म ) ऐसे स्वरूप वाले प्रभु को अपने दिल दिमाग में बैठाकर जप, तप, ध्यान एवं पूजन करना चाहिये। यही मावन जीवन के कल्याण का सबसे सरल और सुगम साधन है।