महिलाओं को खुद लड़नी होगी अपनी आजादी की लड़ाई-मीना चौबे
समाज को तरक्की की नई दिशा देने और महिलाओं को न्याय दिलाने की जीवटता कोई मीना चौबे से सीखे। मीना को सिर्फ जनहित के मुद्दों पर संघर्ष करने ही नहीं आता, सियासत की नब्ज जांचना भी उन्हें बखूबी आता है। शायद तभी भाजपा ने इन्हें प्रदेश सचिव नियुक्त किया है। अचरज की बात यह है कि वो आज जिस मुकाम पर हैं, वहां पहुंचकर उन्होंने कोई बड़ा ख्वाब नहीं पाला है। मीना चौबे की कामयाबी का किस्सा बहुत कम लोग जानते हैं। ये खामोशी के साथ गांवों की पगडंडियों और बनारस की गलियों में भागती नजर आती हैं। इन्हें अपनी संस्कृति, सामाजिक नियमों और संस्कारों से अगाध प्रेम है। मीना चौबे सियासत को शगल नहीं, जनसेवा का जरिया मानती हैं। इन्होंने हमारे संवाददाता मनोज कुमार से विस्तार से बात की है। पेश है प्रमुख अंश-
राजनीति के अखाड़े में कद्दावर नेता की तरह पहचान बनाने में जुटी हैं मीना
संघर्ष की आंच में तपकर
निकली स्त्री के चेहरे पर एक चमक और सादगी होती है। राज्य महिला आयोग की सदस्य और भाजपा
नेत्री मीना चौबे से जब कभी मिलेंगे, आपको मुस्कान और
आत्मीयता से लिपटी इन्हीं दो चीजों का उपहार मिलेगा। वह सिर्फ जनसेवक की भूमिका
में नहीं, इनके दिल में एक बड़ी खदबदाहट है इतिहास बनाने का। राजनीति
के अखाड़े में वो कद्दावर नेता की तरह पहचान बनाने में जुटी हैं। वो कहती हैं, -मेरा नेता नीति है, संविधान है और
विधान है। मेरा नेता भूखा- नंगा आदमी है। मेरा नेता गांव में रहने वाला गरीब इंसान
है। त्रासदी से जूझ रही महिलाओं की आवाज मुझे सोने नहीं देती। उनकी परेशानियां
मुझे पुकार रही हैं। पुकार का मंत्र विश्वसनीय बनाने में जुटी हूं। महिलाओं को
संबल देने की कोशिश में जुटी हूं। सामाजिक अन्याय के खिलाफ जनमानस बनाने का प्रयास
कर रही हूं। माता-पिता और मेरे पति ने संघर्ष की प्रेरणा दी है। जहां विकास की बात
आएगी, आदर्श की बात आएगी, मजबूत इरादों के
साथ लड़ूंगी।
सवालः 21वीं सदी में भी
स्त्री पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं है। तमाम चित्रकार, मूर्तिकार, कवि, वास्तुविद, संगीतज्ञ हुए, लेकिन सभी बड़े
नाम पुरुषों के खाते में दर्ज हुए। क्या सृजन का सारा काम पुरुषों ने किया है?
बात उल्टी है।
स्त्री पुरुष को पैदा करने में इतना बड़ा श्रम कर लेती है कि उसे लगता है कि और
कुछ सृजन करने की जरूरत नहीं है। स्त्री के पास अपना एक क्रिएटिव एक्ट है।
पिता-पति सहयोग दें तो स्त्रियां हर रोज तरक्की का नया आयाम रच सकती हैं। गरीब
महिलाओं के घर जाइए। पता चल जाएगा। महिलाएं ही घरों को मंदिर की तरह पवित्र बनाती
हैं। महिलाओं के आयाम, संभावनाओं और
उनकी ऊंचाइयों की गिनती ही नहीं की जाती है। गांव हो या शहर, स्त्रियां निरंतर
सृजन के नए-नए आयाम खोजती हैं। वो ऐसा नोबल पुरस्कार पाने के लिए नहीं करतीं। स्त्रियों
को दिशा देने के लिए, सोचने के लिए पुरुषों को ही आधार देना होगा।
मुझे मेरे पति ने आधार दिया, तभी मैं इस मुकाम पर पहुंची हूं।
सवालः क्या आपको लगता है
कि समाज में महिलाओं की स्थिति को कमतर आंका जाता है?
बड़े-बड़े चोर, कुख्तात डकैत, माफिया, हत्यारे आदमी मिल
जाएंगे, लेकिन उसमें एसी महिलाएं खोजना मुश्किल होगा। जिन्होंने
सुंदर सा घर बनाया हो, जिन्होंने बेटा-बेटियां पैदा की हों, जिन्हें बड़ा
करने में मां की सारा ताकत, सारी प्रार्थना, सारा प्रेम लगा
दिया हो इसका कोई हिसाब नहीं मिलेगा। देखिए, दुनिया भर में जो
भी इतिहास है, वो पुरुषों का है। गिनी-चुनी महिलाएं ही इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं। हम इतिहास के
धुधलेपन से चीजों को देखते हैं। मैं चाहती हूं कि इतिहास लिखने वाले ऐसी स्त्रियों
का भी उल्लेख करें, जिनकी सृजनात्मक शक्ति को अनदेखा किया जाता रहा
है।
भारतीय समाज में महिलाओं
की स्वीकृति तो बढ़नी ही चाहिए। महिलाओं को लेकर शहरों में पुरुषों का नजरिया बदला
है, लेकिन गांवों में लड़कियां आज भी लड़कों से कमतर आंकी जाती
हैं। जिस स्त्री स्वीकृत होगी, विराट मनुष्यता में उतना ही स्थान पा लेगी, जितना पुरुष का
है। तब इतिहास दूसरा दिशा लेना शुरू कर देगा। महिलाओं के उत्थान और तरक्की के लिए संघर्ष
कर रही हूं। मैं चाहती हूं ही सभी महिलाओं का हुनर समाज के सामने आए।
सवालः
कोई भी राजनीतिक दल आधी आबादी को आधा अधिकार नहीं देना चाहता। आखिर इसकी वजह क्या
है?
सिर्फ आधी आबादी
कह देने भर से यह हिस्सेदारी नहीं मिल जायेगी। इसके लिए महिलाओं को शिक्षित और स्वावलंबी बनना
होगा। गुणवत्ता के साथ इस क्षेत्र में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करनी होगी। तभी स्त्रियों
को वो अधिकार मिल पाएंगे, जिसका अधिकार का
इंतजार आज हर महिला को है। तब कोई उनसे उनका अधिकार को कोई नहीं छीन सकता। समाज में
अब महिलाओं की स्वीकृति तेजी से बढ़ रही है। यह अच्छा संकेत है। लेकिन सिर्फ संकेत
से काम नहीं चलेगा।
सवालः महिलाओं के लाख प्रयास
के बावजूद महिला विधेयक पास नहीं हो सका? आखिर क्यों?
नेताओं की कथनी और
करनी का अंतर ही इस बिल को अभी तक अटकाए हुए है। भारतीय जनता पार्टी अपने हर घोषणा-पत्र
में इस मुद्दे को उठा रही है। विपक्षी दल नहीं चाहते हैं कि यह बिल पारित हो सके।
सवालः हाल के दिनों में यूपी
में महिलाओं पर जुल्म और ज्यादती की घटनाएं बढ़ रही हैं? आखिर इसकी वजह क्या है?
महिलाओं की सुनवाई अब
हर जगह होने लगी है। अगर किसी महिला को न्याय नहीं मिल पा रहा है तो वो अपनी शिकायत
व्हाट्सएप पर भी शिकायत दर्ज करा सकती हैं। मोबाइल ने अब महिलाओं की शिकायतें दर्ज
कराने का आसान गलियारा दे दिया है। अब ज्यादा मामले दर्ज हो रहे हैं, इसलिए ये अधिक दिख रहे हैं।
सवालः भारतीय समाज में ज्यादातर
महिलाएं राजनीति को अंधेरा गलियारा मानती हैं। अगर वो किसी पद पर चुन भी ली जाती हैं
तो कुर्सी पर कब्जा उनके पतियों का ही होता है, आखिर क्यों?
शिक्षा और जागरुकता
की कमी के चलते पिछड़े इलाकों में कुछ महिलाएं अभी भी रबर स्टांप बनी हुई हैं। ग्राम
पंचायतों में तैंतीस फीसदी पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। ये चुनाव तो लड़ती हैं, लेकिन कब्जा उनके पति, देवर और ससुर का ही होता है।
जब तक महिलाएं खुद स्वावलंबी नहीं बनेंगी तब तक कानून या
विधेयक बना देने भर से कुछ नहीं होगा।
सवालः आप राज्य महिला आयोग
की सदस्य हैं। महिलाओं के पेंचीदा मामलों को हल करने के लिए कितनी दिलचस्पी लेती हैं? आपने कोई अनूठा फैसला किया है, जिसे समाज याद रखेगा?
परिवार को टूटने से
बचाना और शिकायत की तह तक जाकर सच्चाई के आधार पर न्याय दिलाना हमारा मकसद है। हम परिवारों
को टूटने से ज्यादा बचाने में यकीन रखते हैं। महिलाएं महिला आयोग के व्हाट्सएप नंबर
6306511708 पर सोमवार से
शुक्रवार के बीच आधार कार्ड के साथ भेज सकती हैं। ऐसे मामलों को आयोग संज्ञान में लेता
हैं और उसका निराकरण करता है। पति-पत्नी के तमाम क्रिटिकल मामलों को हमने सुलझाया
है। ये वो मामले हैं जिन्हें हम सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं कर सकते।
सवालः भाजपा ने आपको संगठन
में प्रदेश मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी है। इस पद को आप कैसे मैनेज कर रही हैं?
हमारा काम संगठन की नीतियों को लोगों तक पहुंचाना और बूथ स्तर पर पार्टी संगठन को मजबूत करना है। इस मुहिम में मैैं अनवरत प्रयास कर रही हूं।
सवालः अपनी सफलता का श्रेय किसे देती हैं?
सफल होने के लिए
सबसे पहले अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए। हर क्षेत्र में खुली प्रतियोगिता है।
मेरिट को अधिक महत्व दिया जाता है। आपके अंदर दृढ़ता और समस्याओं से जूझने की ताकत
और पति व परिजनों का समर्थन एवं सहयोग मिलना चाहिए।