एक अदृश्य वैश्विक महामारी
कोरोना वायरस को लेकर हमारे देश स्वीडन की निश्चिंत भाव की नीति से दुनिया के अनेक देश और उनके मीडिया संस्थानों के सदस्य बहुत आश्चर्यचकित हैं। यहां स्कूल और अधिकांश कार्यस्थल खुले हैं और पुलिस-अधिकारी सड़कों पर यह देखने के लिए खड़े नहीं हैं कि बाहर निकलने वाले लोग किसी आवश्यक कार्य से जा रहे हैं, या यूं ही हवा खाने निकले हैं।
अनेक कटु आलोचकों ने तो यहां तक कहा कि स्वीडन सामूहिक-इम्युनिटी विकसित करने के चक्कर में अपने (बुज़ुर्ग) नागरिकों का बलिदान करने पर आमादा है।
यह सच है कि स्वीडन में इस बीमारी से मरने वालों की संख्या हमारे निकटतम पड़ोसी डेनमार्क, नार्वे और फ़िनलैंड से ज्यादा है। लेकिन मृत्यु दर ब्रिटेन, स्पेन और बेल्जियम की तुलना में कम है। (इन सभी देशों में कड़ा लॉकडाउन है-अनुवादक)
अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि सख्त लॉकडाउन, केयर-होम में रहने वाले बुजुर्गों और अन्य कमजोर लोगों को नहीं बचा पाता है। जबकि इस लॉकडाउन को इस कमजोर तबके को बचाने के लिए डिजाइन किया गया था।
ब्रिटेन के अनुभवों की तुलना अन्य यूरोपीय देशों से करने पर यह स्पष्ट होता है कि लॉकडाउन से कोविड-19 की मृत्यु दर में कमी भी नहीं आती है।
पी.सी.आर. टेस्ट और अन्य पक्के अनुमानों से यह संकेत मिलता है कि स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में 5 लाख से अधिक लोगों को कोविड-19 का संक्रमण हो चुका है, जो कि स्टॉकहोम की कुल आबादी का 20 से 25 फीसदी है (हैनसन डी, स्वीडिश पब्लिक हेल्थ एजेंसी , निजी संचार)।
इन में से 98-99 प्रतिशत या तो इस बात से अनजान हैं या फिर अनिश्चित हैं कि उन्हें कोरोना का संक्रमण हुआ है। इनमें से कुछ ही ऐसे थे, जिनमें कोरोना की बीमारी का कोई मुखर लक्षण था; और जिनमें ऐसा लक्षण था भी, वह इतना भी गंभीर नहीं था कि वे अस्पताल जाकर जांच करवाने की जरूरत महसूस करते। कुछ में तो कोई लक्षण ही नहीं था।
अब तो सीरोलॉजी-टेस्ट से भी उपरोक्त तथ्यों की ही पुष्टि हो रही है।
इन तथ्यों ने मुझे निम्नलिखित निष्कर्षों तक पहुँचाया है।
(दुनिया के) सभी लोग कोरोना वायरस के संपर्क में आएंगे और अधिकांश लोग इससे संक्रमित हो जाएंगे।
कोविड -19 दुनिया के सभी देशों में जंगल की आग की तरह फैल रहा है। लेकिन हम यह नहीं देख रहे हैं कि अधिकांश मामलों में इसका संक्रमण नगण्य या शून्य लक्षण वाले कम उम्र के लोगों से अन्य लोगों में होता है। जिन अन्य लोगों को यह संक्रमण होता है, उनमें भी इसके नगण्य लक्षण ही प्रकट होते हैं।
यह एक असली महामारी है, क्योंकि यह हमें दिखाई देने वाली सतह के नीचे-नीचे चल रही है। शायद कई यूरोपीय देशों में अब यह अपने चरम पर है।
ऐसे काम बहुत कम हैं, जो हम इसके प्रसार को रोकने के लिए कर सकते हैं। लॉकडाउन संक्रमण के गंभीर मामलों को थोड़ी देर के लिए रोक सकता है, लेकिन जैसे ही एक बार प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी, मामले फिर से प्रकट होने लगेंगे।
मुझे उम्मीद है कि आज से एक वर्ष पश्चात् जब हम हर देश में कोविड -19 से होने वाली मौतों की गणना करेंगे तो पाएंगे कि सभी के आंकड़े समान हैं, चाहे उन्होंने लॉकडाउन किया हो, या न किया हो।
कोरोना के संक्रमण के ग्राफ का वक्र समतल (Flatten the Curve) करने के लिए उपाय किए जाने चाहिए, लेकिन लॉकडाउन तो मामले की गंभीरता को भविष्य में प्रकट होने के लिए सिर्फ आगे धकेल भर देता है। लॉकडाउन से संक्रमण को रोका नहीं जा सकता।
यह सच है कि देशों ने इसके प्रसार को धीमा किया है, ताकि उनकी स्वास्थ्य प्रणालियों पर अचानक बहुत ज्यादा बोझ न बढ़ जाए, और हां, इसकी प्रभावी दवाएं भी शीघ्र ही विकसित हो सकती हैं, लेकिन यह महामारी तेज है, इसलिए उन दवाओं का विकास, परीक्षण और विपणन शीघ्र करना होगा।
इसके टीके से भी काफी उम्मीदें हैं। लेकिन उसे बनने में अभी लंबा समय लगेगा और इस वायरस के संक्रमण के प्रति लोगों के इम्यून तंत्र की अस्पष्ट प्रतिक्रिया (Unclear Protective Immunological Response to Infection) के कारण, यह निश्चित नहीं है कि टीका प्रभावी होगा ही।
सारांश में कहना चाहूंगा कि कोविड -19 एक ऐसी बीमारी है, जो अत्यधिक संक्रामक है और समाज में तेजी से फैलती है। अधिकांश मामलों में यह संक्रमण लक्षणहीन होता है, जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता, लेकिन यह गंभीर बीमारी का कारण भी बनता है, और यहां तक कि मृत्यु का भी।
स्वीडिश महामारीविद् व चिंतक जोहान गिसेके की टिप्पणी “एक अदृश्य वैश्विक महामारी” का प्रमोद रंजन द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद