बनारस की 42 ग्राम पंचायतें, न घर की न घाट की, बढ़ते शहरीकरण में नहीं मिल पा रहा विकास कार्यों का लाभ
- शहर से सटे इन गांवों में मजदूरों को भी रोजगार देना हो रहा है मुश्किल
- नगर निगम के दायरे में इनके भी शामिल होने की है उम्मीद, उससे मिलेगा लाभ
- शहरीकरण की जद में आयीं इन ग्राम पंचायतों को किया जा रहा है सूचीबद्ध
- जनपद की 61 ग्राम पंचायतें पहले ही शामिल हो चुकी हैं नगर निगम क्षेत्र में
सुरोजीत चैटर्जी
वाराणसी। लगातार बढ़ते शहरीकरण से वाराणसी भी अछूता नहीं है। जनसंख्या में वृद्धि, अन्य शहरों और प्रदेशों से यहां आकर लोगों के बसने, नगर के विभिन्न बड़े संस्थानों से रिटायर होने के बाद यहीं जीवन-यापन करने और इसी शहर का हो जाने की मंशा ने गांवों और खेत-खलिहानों को निगलना आरंभ कर दिया है। ऐसी ही तमाम और भी वजहें हैं जिससे जनपद की और 42 ग्राम पंचायतें भी नगर निगम के दायरे में आ सकती हैं। कारण, इन ग्राम पंचायतों में न तो श्रमपरक कार्य कराना सम्भव हो पा रहा है और न ही शहरी विकास कार्यों का उन्हें लाभ ही मिल रहा है। हाल इसी से समझिए कि यह ग्राम पंचायतें न इधर की रह गयी हैं और न ही उधर की।
बनारस में पहले 702 ग्राम पंचायतें थीं। कुछ साल पहले हुए परिसमन के बाद ग्राम पंचायतों की संख्या बढ़कर 760 हो गयी। लेकिन यह स्थिति अधिक समय तक टिकी नहीं रह सकीं। हाइ-वे के किनारे, शहर से सटे गांवों में तेजी से पनपती कॉलोनियों की बाढ़ आ चुकी है। हजारों हाउसिंग सोसायटियां विकसित हो गयी हैं। धुंआधार प्लॉटिंग जारी है। शहर के बाहरी इलाकों में मुख्य मार्गों के निकट जमीन के रेट आसमान छू रहे हैं।
यह सिलसिला न तो थमेगा और न ही गांवों का शहरीकरण रुकेगा। इसका परिणाम यह हो रहा है कि खेत-खलिहानों का अस्तित्व मिटता चला जा रहा है। खेतों की जोत कम हो रही है। ग्रामीण इलाकों के लिये लागू शासन की कई योजनाओं को ऐसे गांवों में अमली जामा पहनाने में समस्या हो रही है। फलस्वरूप शहरीकरण की जद में आ चुके गांवों में न तो कई ग्रामीण स्कीम का लाभ देना मुमकिन हो पा रहा है और न ही उन्हें नगरीय योजनाओं का फायदा मिल रहा है।
ऐसा नहीं कि सिर्फ बनारस में यह हाल है बल्कि सभी नगरों में यह स्थिति दिखने लगी है। यह क्रम कहां जाकर थमेगा फिलहाल कहना मुश्किल है। ऐसी ही परिस्थितियों को देखते हुये सरकार भी किसानों के लिए छोटी जोत की खेती के अनुरूप योजनाएं ला रही है। वर्तमान में बढ़ते शहरीकरण की चपेट में बनारस भी है। शासन ने लगभग एक साल पहले वाराणसी की 61 ग्राम पंचायतों को नगर निगम में शामिल कर लिया है।
वर्तमान में विश्वस्त सूत्रों की मानें तो नगर निगम में सम्मिलित की गईं 61 ग्राम पंचायतें ही नहीं वस्तुस्थितियों को देखते हुए अब और भी दर्जनों अन्य ग्राम पंचायतों व कुछ ग्राम पंचायतों को आंशिक रूप से नगर निगम में शामिल करने की सुगबुगाहट है। सूत्रों बताते हैं कि जिन 61 ग्राम पंचायतों को नगर निगम के दायरे में लिया गया है उनके अलावा तमाम अन्य ग्राम पंचायतों को निकायों में सम्मिलित किया जा सकता है। सम्बंधित ग्राम पंचायतों को इसके लिए सूचीबद्ध कर रहे हैं।
उम्मीद जतायी का रही है कि जिन अन्य 42 ग्राम पंचायतों को नगर निगम में शामिल करने का खाका तैयार हो रहा है उनमें चिरईगांव विकास खण्ड की कमौली, गौरा कलां, खानपुर, बरियासनपुर, चिरईगांव, उमरहा व पतेरवां शामिल हैं। इसी प्रकार हरहुआ ब्लॉक में बड़ालालपुर, दानियालपुर, भवानीपुर, बेलवरिया, अहिरान, कोइरान, भेलखां, वाजिदपुर, हरहुआ, तरना, छतरीपुर, सभईपुर आंशिक व आदमपुर हैं।
वहीं, काशी विद्यापीठ विकास खण्ड में केराकतपुर, हरपालपुर, भुल्लनपुर, अखरी, खनाव, खुशीपुर, चांदपुर आंशिक, भिटारी, टड़िया, लखनपुर, चन्दापुर, परमानंदपुर, मिसिरपुर, गजाधरपुर, विशोखर, सगहट, हरिहरपुर, केशरीपुर, मड़ाव, धन्नीपुर, महमूदपुर और डाफी आंशिक भी शहरीकरण के दायरे में आ चुका है। हाल यह है कि यह ग्राम पंचायतें नगरीय ढांचे में बदल चुकी हैं और यहां कंक्रीट के जंगल इतने अधिक हो गए हैं कि यहां न सिर्फ मनरेगा बल्कि अन्य कई कच्चे कार्य नहीं मिल पा रहे हैं।
यहां के पंजीकृत जॉबकार्ड धारकों को मनरेगा से रोजगार नहीं मिल पा रहा है। हालांकि मनरेगा के पहले से तय मानकों में कार्यों के घटते अवसरों के बढ़ते संकट को देखते हुए सरकार ने इसकी योजना में कई स्तर पर विकल्प बढ़ाये हैं। उसके बावजूद शहरीकरण की चपेट में आईं ग्राम पंचायतों में जॉबकार्ड धारकों को रोजगार मुहैया कराना भारी पड़ रहा है। सम्भवतः इसी कारण ऐसे ग्राम पंचायतों को अंततः नगर निगम में सम्मिलित करने पर मंथन चल रहा है।