ये मेरी कलम.... अंकिता की कुछ सुंदर रचनाएं....
एक शाम सी है ज़िन्दगी
एक शाम सी है ज़िन्दगी
शमशान बन ये जाएगी।
जिसके लिए है भटकता
एक दिन चली ये जाएगी।
उम्मीद की किरण सी है
किसी के लिए चुभन सी है।
जाते सभी हैं छोड़कर
एक दिन ये छोड़ जाएगी।
जिसे मिल गयी वो ख़ुशनसी
जिसे न मिली वो बदनसी।
यही ज़िंदगी का खेल है
कुछ ऐसे ही ये तड़पायेगी।
एक शाम सी है ज़िन्दगी
शमशान बन ये जाएगी।
कभी हमें हंसाएगी
और फिर वही रुलाएगी।
प्रकृति ने हमें जीना सिखाया
प्रकृति ने हमें जीना सिखाया,
हमने उसे हर पल सताया।
अपने फूल पौधों से उसने दुनिया महकाया,
हमे उन्हें काट कर उसे रुलाया।।
हमारी भलाई के लिए उसने साफ हवा चलाई हैं,
हमने उसकी कद्र ना करके, उसे प्रदुषित बनाई हैं।।।
दुनिया को हसीन ये पर्यावरण ही बनाती हैं,
लेकिन लोगों के ये बात समझ नहीं आती हैं।।।।
हर साल पर्यावरण की ओर एक और क़दम बढ़ाना हैं,
हमें उसे खुद ही बचाना हैं।।।।।
चलो मिल कर देश बचाते हैं,
पर्यावरण क्या है सबको समझाते हैं।।
हम मिल कर काम करे तो, मेहनत रंग लाएगी,
हमारे प्रकृति फ़िर से जरूर मुस्कुराएगी।।।
इस प्रकृति को हमे फ़िर से वापस पाना हैं,
उसके गिरे आंसुओ को मोती बनाना हैं।।।।।
ये मेरी कलम....
ये कलम मेरी जब चलती है,
दिल की किताब मैं लिखती हूँ।।
लोगों से मिला मुझे क्या-क्या,
एक-एक हिसाब मैं लिखती हूँ।।
जब दिल भर जाता है ये मेरा,
मैं अपनी डायरी लिखती हूँ।।
बचपन की याद जब आती है
ख़ुद की मुस्कान,मैं लिखती हूँ।।
हर रोज़ हैं मिलते लोग नये
लोगों की छाप मैं लिखती हूँ।।
जब कोई सुनाता है मुझको
मैं सबकी दास्ताँ लिखती हूँ।।
जो कुछ भी दिखता आस-पास
सब का यथार्थ मैं लिखती हूँ।।
कविता लिखने का शौक़ मुझे
मन के भावार्थ मैं लिखती हूँ।।
तुम अज़ीज़ थे
तुम अज़ीज़ थे,तुम हबीब थे
मेरे दिल के कितने क़रीब थे
क्यों आँसुओं का सबब बने
क्यों आह बनकर रुक गये
तुम रंग थे ,बहार थे
मेरे भाव का श्रृंगार थे
तुम फूल थे ,सुकून थे
क्यों शूल बनकर चुभ गये
तुम आस थे,उम्मीद थे
मेरी धड़कनों का गीत थे
दे ज़िन्दगी को रौशनी
क्यों दीप बन कर बुझ गये
तुम राह थे,मुक़ाम थे
मेरी खोज का अंजाम थे
हमसफ़र बने तो थे
क्यों बीच राह मुड़ गये
अंकिता भारती
शिक्षार्थी, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ