यादें: रिजवाना... तुम कब आओगी?

मेरी कलम में ही मेरी अब्बू की सांस है-रिजवाना तबस्सुम


रिजवाना तबस्सुम मेरी बहन तो थी ही, एक दोस्त का किरदार भी निभाती थी। बेमिसाल इसलिए थी कि वो झूठ नहीं बोलती थी। कम से कम मुझसे तो बिल्कुल नहीं। उसकी सबसे बड़ी चिंता थे उसके अब्बू। वो मुझे कभी भैया कहती थी और कभी सर...। अक्सर कहा करती थी,- "मेरी कलम में ही मेरी अब्बू की सांस है। जिस रोज रुक जाएगी, अब्बू शायद ही बच पाएंगे। क्या आप अपनी बहन का साथ नहीं देंगे...? "



अपनी दोस्त के साथ रिजवाना


विजय विनीत


17 नवंबर-2019 का दिन था। उस रोज रिजवाना तबस्सुम के बड़े भाई मोहम्मद अकरम की शादी थी। बनारस के जंसा के पास एक गांव में। रिजवाना की जिद थी कि आप जरूर आएंगे। मगर अकेले नहीं, सुमन भाभी के साथ। जब तक आप लोग नहीं आएंगे, इंतजार करूंगी घर पर...। हम देर से पहुंचे। बारात जा चुकी थी। लेकिन रिजवाना हमारी राह देख रही थी। हम पहुंचे तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।


रिजवाना रास्ते भर अकरम की शादी की चर्चा करती रही। बताया था कि अब्बू की तबीयत खराब रहती है। खाना मैं ही बनाती हूं या फिर मां। रिपोर्टिंग पर निकलती हूं तो बहुत दिक्कत होती है...। उसने खुद बताया,- "भैया ने भाभी को देखा तक नहीं। हामी भर दी शादी के लिए। लेकिन मैं मिल चुकी हूं। अच्छी हैं वो...। "


शाम करीब तीन बजे पहुंचे थे अकरम के जनवासे में। अकरम के दोस्त बाद में आए। रिजवाना के भाई बनारस के टाटा मेमेरियल कैंसर संस्थान के प्रशासनिक अनुभाग में काम करते हैं। शादी में रिजवाना हमारी खिदमत में जुटी रही। मिठाई-नमकीन, चाय और न जाने क्या-क्या..। बाद में वो मेरी पत्नी सुमन को अपने साथ ले गई, अपनी भाभी से मिलवाने। उसी दौरान रिजवाना ने बताया था कि सौ से अधिक लोगों का बड़ा कुनबा है उसकी भाभी के मायके वालों का। ढेर सारे लोग-ढेर सारा काम।


रिजवाना ने शादी में कुछ चुनिंदा लोगों को ही बुलाया था। शादी से लौटने को हुआ तभी वहां पहुंचा था शमीम नोमानी। बताया था कि ये मेरा दोस्त है। पढ़ा-लिखा और समझदार है। बनारसी साड़ियों का खासा कारोबार भी है। यहीं हुई थी शमीम से मेरी पहली मुलाकात। इससे पहले मैं नहीं जानता था उसे।


रिजवाना मेरी छोटी बहन की तरह थी। छुटकी सी। बहन तो थी ही, एक दोस्त का किरदार भी निभाती थी। बेमिसाल इसलिए थी कि वो झूठ नहीं बोलती थी। कम से कम मुझसे तो बिल्कुल नहीं। उसकी सबसे बड़ी चिंता थे उसके अब्बू। वो मुझे कभी भैया कहती थी और कभी सर...। अक्सर कहा करती थी,- "मेरी कलम में ही मेरी अब्बू की सांस है। जिस रोज रुक जाएगी, अब्बू शायद ही बच पाएंगे। क्या आप अपनी बहन का साथ नहीं देंगे...? "


खबरों की बाबत रिजवाना मुझसे डिस्कस करती थी। किसी न किसी टापिक्स पर रोजाना लंबी चर्चा करती थी। मैं जानता था कि रिजवाना की कलम ही इसकी अब्बू की दवा है। खबरों को लेकर इतनी जुनूनी थी कि वो कहीं भी, किसी भी समय जाने की हिम्मत रखती थी। उसे जुल्म और ज्यादती सहन नहीं होती थी। मुझे याद है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के आंदोलन के समय बनारस के कई लोग गिरफ्तार हुए थे। उसमें कुछ साथी उसके भी थे।


एक रोज अपने अब्बू को साथ लेकर खुद जमानत देने आई थी बनारस की कचहरी में। उसी दौरान गाजीपुर में कुछ पत्रकार भी गिरफ्तार किए थे। रिजवाना वहां भी पहुंच गई थी उन्हें जेल से रिहा कराने। वो हिजाब लाकर रिपोर्टिंग करती थी। बगैर बुर्के के घर से बाहर नहीं निकलती थी।


मैं कहा करता था,- "तुम बुर्का पहनकर रिपोर्टिंग करने जाती हो तो साफ्ट तारगेट बन जाती हो। साधारण कपड़े पहना करो। किसी दिन पुलिस वाले ही तुम्हें किसी फर्जी मामले में घसीट देंगे।" तब उसका जवाब होता था, "आप जैसे मेरे भाई हैं। मेरा कुछ नहीं होगा।" मैने अपने अब्बू को आपका, अभिषेक भैया (दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार) का नंबर दे रखा है। बता दिया है कि अगर कभी मुश्किल आए तो सबसे पहले इन्हें ही सूचना देना। शायद उसे पुख्ता यकीन था कि मुश्किल में हम लोग ही उसका साथ देंगे..।


रिजवाना मेरे साथ दो बार रिपोर्टिंग पर गई थी। पहली मर्तबा 20 सितंबर 2019 को नक्खीघाट इलाके में बाढ़ से घिरे बुनकरों  का हाल जानने और दूसरी बार छह दिसंबर 2019 को मणिकर्णिका घाट पर। दोनों बार काफी जिद करने पर उसे साथ ले गया था। दरअसल कोशिश के बावजूद वो उन जगहों पर नहीं जा पा रही थी। तब उसने मेरी हेल्प मांगी थी। मणिकर्णिका घाट पर हम और रिजवाना डोमराजा के शेरों वाली कोठी में पहुंच गए थे। चुपके से कई संगीन तस्वीरें भी उतार ली थी। उसी दिन हम दोनों को पता चला था कि मणिकर्णिका घाट के डोम मुर्दों और उनके साथ आने वाले लोगों के पुराने कपड़ों को धुलकर बाजार में बेचते भी हैं। डोम के घर के लोगों की वाशिंग मशीन में मुर्दें के कपड़ों की धुलाई करते हुए हमने तस्वीरें भी उतारी थी।


नए साल पर रिजवाना मेरे घर आई थी। मिठाई खाने। तभी बताया कि मुझे मिठाई बहुत पसंद है। तब उसके साथ शमीम नोमानी भी था। उसी रोज हमें रिजवाना ने बताया था कि शमीम मुझे लेकर बहुत गंभीर है। खबरों की चर्चा के दौरान उसे तंग करने के लिए यदाकदा जरूर पूछता था, -"वो तुम्हारा मजनूं कैसा? तब वो कहती कि मुझे बहुत चाहता है। मगर वो साइको है। कोई भरोसा नहीं है उसका। पता नहीं, मेरा साथ देगा या नहीं...? लेकिन मैं अपने करियर को लेकर चिंतित हूं।" रिजवाना ने मुझे बताया था कि एक रोज वो बीएचयू के गर्ल्स छात्रावास में रुक गई थी। शाम का समय था। शमीम उसे लेने आया था बीएचयू। रिजवाना ने उसे बताया कि वो महिलाओं के हास्टल में है। अब वो खुल नहीं सकता। तुम लौट जाओ...। मगर वो नहीं लौटा। पूरी रात उसने पीएमसी तिराहे पर गुजार दिया।


लाकडाउन से कुछ रोज पहले रिजवाना दिल्ली गई थी। अपने खबरों के बाबत। कुछ पत्रकार साथियों से मिलने। वो भी शमीम को बिना बताए। जैसे ही जानकारी मिली, शमीम भी दिल्ली पहुंच गया। हालांकि रिजवाना खबर लहरिया में काम करने वाली अपनी एक दोस्त के यहां ठहरी थी। बात भी कराई थी उसने मुझसे। तब बताया था कि ये मेरे भैया हैं। बहुत संबल देते हैं मुझे।


आखिरी बार 29 मार्च 2020 को मुझसे मिली थी रिजवाना। मेरे जनसंदेश टाइम्स के दफ्तर में। उस रोज मेरा जन्मदिन था। शुभकामना देने के लिए ही वो आई थी। उस समय लाकडाउन चल रहा था। उस रोज भी समीम नोमानी उसके साथ था। करीब दो घंटे रही।


मैं फरवरी में मुंबई गया था। तब उसने फोन पर फरमाइश की,- "भैया मेरे लिए स्मार्ट बैंड जरूर लाइएगा।" अपने जन्मदिन पर वही बैंड मैने दिया उसे। रिपोर्टिंग के लिए उसे एक कालर माइक की भी दरकार थी। दिया तो चहकने लगी...।


लाकडाउन में हम रोज ही स्टोरी लिखते रहे। रिजवाना पढ़ती तो खौलने लगती। शिकायत करती, -"वहां मुझे क्यों नहीं ले गए? " जब मैं मना करता तब वो अक्सर याद दिलाती,-"आप तो जानते ही हैं, मेरी कलम ही अब्बू की दवा हैं। मुझे तब तक कलम चलानी है जब तक अब्बू की रुह में सांसें हैं।" लाकडाउन में मैं जहां भी गया, जिनसे मैं मिला, सबका फोन नंबर उसे देता गया। इस दौरान रिजवाना ने भी तमाम स्टोरियां खुद लिखींं। उसमें गजब का हौसला था। वो जो भी लिखती थी, उसमें दम होता था। तभी तो उसकी रपटें देश भर में चर्चा में रहती थीं।


रिजवाना में बहुत कुछ कर गुरजने का हौसला था। हर रोज एक नई रपट लिखती थी। इसके बगैर उसे नींद नहीं आती थी। शायद इसलिए कि वो रपटें ही उसके अब्बू की दवा थीं...।


रिजवाना से दो मई 2020 को अपराह्न करीब ढाई बजे आखिरी बार फोन पर बात हुई थी। उस समय मैं दफ्तर में रपट तैयार कर रहा था। तब उसने कहा था,- "सर तीन मई तक लाकडाउन खुलने की उम्मीद है। अगर नहीं भी खुला तब भी चार मई को आऊंगी आपसे मिलने। मेरे लिए एक कलम खरीदकर रख लीजिएगा।" मैंने कहा था,- "लाकडाउन में मिल पाना मुश्किल है।" तब उसने कहा था, "मुझे नहीं मालूम कि वो आप कहां से लाएंगे? बस आपसे अच्छी वाली कलम चाहिए...। मैं चाहती हूं कि उस कलम से खुछ लिखूं। हमारी खबरें भी आप की तरह चर्चा में आए...। " 


रिजवाना के लिए मैने एक कलम खरीद भी लिया था। चार मई को वो उसे लेने के लिए मेरे दफ्तर में आने वाली थी। मगर वो नहीं आई। आई तो उसके दुनिया से चले जाने की खबर...। रिजवाना से वादे के मुताबिक उसके भाई अकरम ने सबसे पहले हमें ही फोन किया। बाद में अभिषेक श्रीवास्तव जी को। वो वक्त मेरे जीवन का सबसे पीड़ादायक था। दिमाग सुन्न हो गया था उसकी मौत की खबर सुनकर। हम उसके घर पहुंचे तो उसकी लाश चीरघर जा चुकी थी। उधर शमीम लोहता थाने के कैदखाने में था। 


फिर हिम्मत ही नहीं हुई उसके जनाजे में शामिल होने की। एक बहादुर लड़की का अचानक चले जाना मुझे समझ में नहीं आया। पूरी रात सो नहीं सका। बस खुद से पूछता रहा,- "रिजवाना तुम कब आओगी...! "


 


##रिजवाना ने कुछ दुर्लभ तस्वीरें उतारी हैं, जिसे मैं साझा कर रहा हूं। 



श्री विश्वनाथ कारीडोर को लेकर लोगोंं की नाराजगी 



वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के डोमराजा के घर का सीन, जहां हो रही थी मुर्दों के कपड़ों की धुलाई, जिसे बेचा जाना था बाजार में।





मणिकर्णिका घाट की कुछ तस्वीरें



बाढ़ के दिनों में वाराणसी के नक्खीघाट की तस्वीरें



 


 


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