ये दुनिया है, हमारी भी, उन्हें मालूम ही नहीं
इंदु प्रकाश चौबे
ये दुनिया है, हमारी भी, उन्हें मालूम ही नहीं
बना करके, तेरी तकदीर को, दुनिया घुमाऊंगा
मुझे सपनों, से जगना है , उन्हें मालूम ही नहीं
सुनते थे, बताते थे , ये उनकी, आदतों में है
सुना है, भूल, जाते है, उन्हें मालूम ही नहीं
जहांं से, बह के, आती थी, मेरे तकदीर, की नदियाँ
ओ नाले, अब भी वैसे है, उन्हें मालूम ही नहीं
दिखाते थे, मेरे घर को, की ये तस्वीर बदलेंगे
बदल बैठे, ओ अपना घर , उन्हें मालूम ही नहीं
मेरा, बदहाल, जीवन ये, उन्हें, कितना, रूलाती थी
मैं मर बैठा या जिन्दा हूँ , उन्हें, मालूम ही नहीं
मेरे घर के, बगल में, आ बसे , अच्छे पड़ोसी सा
मुक़दमा हो गया मुझ पर, उन्हें मालूम ही नहीं
मिलें तो, बोलना उनसे, की थोड़ी सी, सरम कर लें
ये दुनिया है, हमारी भी, उन्हें मालूम ही नहीं
इंदु प्रकाश चौबे