नारों के नोवालजिन से नहीं भागेगी महामारी, घंटे-घड़ियाल बजाए...! थालियां पीटीं..! दीपक जलाए...! आखिर क्यों नहीं गया कोरोना?
हमारे पास महामारी के इलाज के लिए विशेषज्ञ नहीं, फिर भी बड़े-बड़े किए जा रहे दावे
पुलिसिया जुल्म-ज्यादती और लाकडाउन नहीं कोरोना के उपचार का कारगर तरीका
विजय विनीत
वाराणसी। घंटे-घड़ियाल बजाए...!, थालियां पीटीं..!, दीपक जलाए...!, लेकिन कोरोना का खौफ कम नहीं हुआ। इसका दायरा बढ़ता गया। सरकार है कि वो अभी नारों की नोवालजिन से कोरोना का खात्मा करने में जुटी है। कहीं डंडे से हालात पर काबू पाने की कवायद चल रही है तो कहीं, इंसानियत को ताक पर रखते हुए मरीजों को जेल भेजकर। नतीजा, बनारस में शटडाउन की स्थिति बनती जा रही है। यह दहशत अथवा खौफ की नहीं, सार्वजनिक यथार्थ की एक बानगी है।
बनारस में जिस तरह कोरोना संक्रमित लोगों की जांच की जा रही है, उसकी रफ्तार बेहद धीमी है। कोविड-19 की भयावहता बढ़ती जा रही है, लेकिन अभी तक इस शहर में इलाज के पुख्ता इंतजाम नहीं किए जा सके हैं। हाल यह है कि कोरोना की महामारी तीसरे चरण में पहुंचने की ओर अग्रसर है। बड़ी दिक्कत यह है कि हमारे पास पैंडेमिक एक्सपर्ट (महामारी विशेषज्ञ) हैं ही नहीं। सिर्फ बनारस ही नहीं, समूचे यूपी में कहीं भी महामारी विशेषज्ञ नहीं हैं। इस वजह से चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।
पूर्वांचल में कोरोना का गंभीर संकट
विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्षेत्रीय निदेशक पूनम खेत्रपाल की मानें तो देश में कोरोना का सामुदायिक प्रसार अभी हुआ नहीं है। बेशक सरकार ने कोरोना से मुकाबला करने के प्रयास किए हैं, लेकिन वे नाकाफी हैं। यह चेतावनी बनारस ही नहीं, समूचे पूर्वांचल के लिए गंभीर संकट का संदेश है। अपने शहर में हजारों प्रवासी मजदूर पहुंच गए हैं। बहुतों की हालत खराब है, लेकिन सब के सब भगवान भरोसे हैं।
धीमी जांच, संसाधनों का घोर अभाव और ऊपर से लापरवाही। ये सीन है बनारस में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकीय सुविधाओं का। कोरोना संदिग्धों को आइसोलेशन में भर्ती कर जांच के लिए सैंपल लिया जाना चाहिए। लेकिन जांच रिपोर्ट समय से नहीं आने से उन्हें घर भेज दिया जा रहा है। ऐसे में कोरोना संदिग्ध घर जाकर परिवार और गांव के लोगों को संक्रमित कर रहे हैं। प्रशासन की नींद तब खुलती है जब जांच रिपोर्ट आती है। अगर समय से जांच हो जाती तो बहुत से लोग संक्रमित होने से बच जाते। हाल के दिनों में बनारस में कई ऐसे मामले आए जिनमें एक ही घर में कई लोग कोरोना की चपेट में आ गए। पता तब चला जब कई दिन बीत जाने के बाद जांच रिपोर्ट आई।
बेमतलब साबित हो रहा लाकडाउन
बनारस का जायजा लें, तो साफ पता चलता है कि इस शहर में लाकडाउन बेमतलब साबित हो रहा है। सार्वजनिक स्थानों, पार्कों, बाजारों में लोग बिना मास्क के आ-जा रहे हैं। बिना सावधानी बरते खांस-छींक रहे हैं, गले मिल रहे हैं और आदतन सड़कों पर सरेआम थूक रहे हैं। इसके लिए सिर्फ प्रशासन दोषी नहीं, हम भी हैं। ये व्यवहार ही कोरोना को फैलने का खाद-पानी दे रहे हैं। बनारस के चिकित्सा विशेषज्ञ ‘सामाजिक दूरी’ और ‘जमावड़े’ पर चिंता व सरोकार तो जरूर जता रहे हैं, लेकिन इसका हल नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं। यदि स्कूल-कालेज, आस्था-केंद्र और मंदिर, कई रेलगाड़ियां, उड़ानें, मॉल, सिनेमाघर, सरकारी दफ्तर आदि को बंद किया गया है तो इसके पीछे एक ही तार्किक कारण है कि लोगों के बीच दूरी बनी रहे और मेल-मिलाप कम हो, ताकि कोरोना के सामुदायिक फैलाव को रोका जा सके।
बनारस के जाने-माने राजनीतिज्ञ एवं विचारक शतरुद्र प्रकाश इस बात से आहत हैं कि इस शहर में कोरोना का मुकाबला वैज्ञानिक आधार पर नहीं किया जा रहा है। वो बताते हैं, "हम चीन के बुहान के लाकडाउन माडल को अपना रहे हैं। ये वो माडल है जिसे दुनिया के तमाम प्रगतिशील देश खारिज कर चुके हैं। दुनिया के विकसित देश साउथ कोरिया के व्हिस्क माडल को अपना रहे हैं और उन्होंने एक हद तक कोविड-19 पर काबू पा लिया है। भारत में केरल को छोड़ दिया जाए तो कोई राज्य ऐसा नहीं है जो कोरोना को लेकर गंभीर और संदेवदनशील हो। ये वही राज्य है जो निपाह वायरस से लड़ा था और उस पर काबू पा लिया था। केरल का नर्सिंग स्टाफ बीमारियों के इलाज के मामले में काफी दक्ष है। वहां की सरकार रोजाना कोरोना बुलेटिन जारी करती है। लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ मानवीयता का बर्ताव करती है। लाकडाउन से पहले केरल के डाक्टर प्रशिक्षण के लिए चीन भेजे गए थे। वहां उन्होंने कोरोना का इलाज भी सीख लिया था। अपने यहां कोई ये तक बताने वाला नहीं है कि कोरोना के वायरस कागज और कपड़ों पर दो घंटे से ज्यादा नहीं ठहरते हैं। बनारस में इन भ्रांतियों को दूर करने वाले विशेषज्ञ चिकित्सक तक नहीं हैं।’
एक भी पैंडेमिक एक्सपर्ट नहीं, कैसे होगा इलाज?
शतरुद्र प्रकाश कहते हैं, "बनारस जिला प्रशासन कोरोना को सिर्फ ला एंड आर्डर का मुद्दा मानता रहा है। आज तक यह भी नहीं बताया जा सका कि रेड जोन में कोरोना महामारी के इंफेक्शन की रेटिंग क्या है? कोरंटाइन सेंटरों की हालत बेहद चिंताजनक है, लेकिन उसे सुधारने की जरुरत क्यों नहीं महसूस की जा रही है? हर किसी को पता है कि इमोशनल नारों से महामारी नहीं खत्म होगी। हम घंटे-घड़ियाल और दीपक जला चुके हैं। कुछ भी नहीं हुआ। सबसे गंभीर बात यह है कि जिस शहर का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कर रहे हैं, वहां एक भी पैंडेमिक एक्सपर्ट नहीं हैं। इन्हें बाहर से ही हायर किया जा सकता था। यूपी में कोरोना की बीमारी पर कोई काम नहीं हो रहा है। बीएचयू जैसा संस्थान भी सफेद हाथी बना बैठा है। सच यह है कि बनारस में अभी तक अर्द्ध ज्ञान पर रोगियों का इलाज चल रहा है। रैंडम टेस्टिंग भी हम नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिए हमारे पास साजो-सामान है ही नहीं। हाल ये है कि दीनदयाल उपाध्याय जिला अस्पताल पांडेयपुर में डाक्टरों के पास पर्याप्त मात्रा में ग्लब्स, मास्क और सैनेटाइजर तक नहीं है। आईएएस अधिकारी गूगल के जरिए कोरोना का समाधान ढूंढेंगे तो यह महामारी घरजमाई बनकर हमारे बीच बैठी ही रहेगी।’
शतरुद्र को लगता है कि कोविड-19 सिर्फ इंडिया की नहीं, समूची दुनिया की बीमारी है। इस आपदा से मानव सभ्यता को बचाने के लिए सबको चिंता करने की जरुरत है। वह सवाल करते हैं कि केरल की तरह यूपी में समझ क्यों नहीं विकसित की जा रही है? अधिकारियों के बजाए डाक्टरों को जवाबदेह क्यों नहीं बनाया जा रहा है? अभी वक्त है और कोरोना को काबू किया जा सकता है, लेकिन लाठी-डंडे और लाकडाउन से कतई नहीं। देश भर में पुलिस का चरित्र एक जैसा और अफसोसनाक है। बीमारी से ग्रसित लोगों के प्रति सहानुभूति बरती जानी चाहिए, न कि जुल्म का पहाड़ तोड़ा जाना चाहिए।
मरीजों के साथ अमानवीय रवैया ठीक नहीं
मानवाधिकार जननिगरानी समिति के संयोजक डा.लेनिन रघुवंशी शहर के जाने-माने एक्टिविस्ट हैं। इन्होंने बड़े पैमाने पर लोगों को मास्क और गरीबों को राशन-भोजन पहुंचाया है। ये इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि कोरोना मरीजों पर बेवजह मुकदमे लादे जा रहे हैं। यह स्थिति तब है जब दुनिया भर में ऐसे 70 फीसदी मरीज चिह्नित हुए हैं, जिनमें कोरोना के लक्षण दिखे ही नहीं। हालत गंभीर हुई तभी अस्पताल पहुंचे और इलाज शुरू हुआ। वो कहते हैं, "बनारस में जिस दवा कारोबारी को मुल्जिम बनाया गया वो मानवाधिकार का उल्लंघन है। वो सजा के काबिल था ही नहीं। फिर भी उसे जेल भेज दिया गया। ये जुल्म-ज्यादती और गैर-मानवीय दृष्टिकोण है। पुलिस जहां-तहां लोगों के साथ पशुवत व्यवहार कर रही है। मीडिया कर्मियों तक को लाठियों और डंडों से पीटा जा रहा है। पुलिसिया जुल्म-ज्यादती के ऐसे ढेरों वीडियो रोज वायरल हो रहे हैं। चीन से उधार ली गई इस टर्मोलाजी से भारत से कोरोना जाने वाला नहीं है। इससे निपटने के लिए सिर्फ ला एंड आर्डर ही काफी नहीं है। जीवन पद्धति को बदलने के लिए मुहिम छेड़ी जानी चाहिए। अफसोस यह है कि मेडिकल क्षेत्र में हम तनिक भी तैयारी नहीं कर पाए हैं।’
डा.लेनिन के मुताबिक, पुलिस ने जिन लोगों को जगह-जगह लाठियों से पीटा है, क्या उनसे यह जानने की कोशिश की गई कि वो किस मजबूरी में घरों से बाहर निकले थे? क्या उनकी मुश्किलों को दूर करने का प्रयास किया गया? बीमार लोगों को अभियुक्त बनाया जाना क्या गैर-मानवीय और गैर-वाजिब नहीं? महामारी के दौर में भी क्या हम राष्ट्रीय संवेदना का चरित्र नहीं दिखा सकते और इंसान को इंसान नहीं समझ सकते? कोरोना काल में ये ऐसे सवाल हैं जो अनुत्तरित हैं, जिसका जबाव सरकार और बनारस जिला प्रशासन को देना चाहिए?
हेल्थ सिस्टम को बेहतर करने की जरुरत
बनारस के तमाम प्रबुद्ध नागरिक अब एक बड़ा सवाल उठाने लगे हैं कि क्या सिर्फ लाकडाउन ही कोरोना महामारी से लड़ने का एकमात्र उपाय है? उत्तर मिलता है-नहीं। वाराणसी के पीआर महिला महाविद्यालय के प्रिंसिपल एवं इतिहासकार डा.आरिफ कहते हैं, ‘ताइवान के बाद दक्षिण कोरिया को देखिए। ये ऐसे देश हैं जो बिना वैक्सीन, एंटी बॉडी और बड़े पैमाने पर लॉकडाउन के बगैर ही कोरोना से उबरने लगे हैं। दक्षिण कोरिया में कई तरह की गाइडलाइन के साथ ही दफ्तर, म्यूजियम खुलने लगे हैं। सड़कों पर वैसी भीड़ तो नजर नहीं आ रही है, लेकिन अब पहले जैसा सन्नाटा भी नहीं दिख रहा है। दरअसल, कोरोना से लड़ने के लिए दक्षिण कोरिया ने थ्री टी (3टी) मॉडल का इस्तेमाल किया है। इसका मतलब है, ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट। बनारस समेत समूचे यूपी में कोरोना के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके बावजूद इस जोखिम से निपटने के लिए हम तैयार ही नहीं हैं। अभी तीस मई तक लाकडाउन किया गया है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसे और भी आगे बढ़ाया जाएगा।’
आरिफ कहते हैं, "बनारस में हेल्थ सिस्टम को बेहतर करने की जरुरत है जो किसी भी स्थिति को संभाल सके। गौर करने की बात यह है कि दक्षिण कोरिया ने अपने यहां लॉकडाउन नहीं किया। मॉल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स तक बंद नहीं किए, लेकिन टेस्टिंग और आइसोलेशन पर बहुत जोर दिया था। अब वहां नए मामलों की संख्या नहीं के बराबर रह गई है। म्यूजिÞयम, लाइब्रेरी और दफ्तर खुलने लगे हैं। इस देश ने हाल में एक महत्वाकांक्षी 'हरित योजना' पेश की है। इसके तहत कोयले से चलने वाले नए संयंत्रों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, वहीं मौजूदा कोयला आधारित संयंत्रों से उत्सर्जन में कमी लाने की कवायद शुरू कर दी गई है। बनारस की कौन कहे, अपने देश में कोरोना से लड़ने की पुख्ता रणनीति अभी तक बन ही नहीं पाई है।"
अभी कितनी दूर है कोरोना वैक्सीन ?
बनारस का हर आदमी यह सवाल करता नजर आ रहा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन बनने में अभी कितना वक्त बाकी? वैक्सीन बनने के बाद कौन सी चुनौतियां होंगी? और वैक्सीन न बनने तक कोरोना को कैसे हराना है? इन सवालों पर हमने बीएचयू के मेडिसीन विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सक डा.एलपी मीणा से बात की।
डा.मीणा कहते हैं, ‘कोरोना वायरस के फैलाव के बाद लॉकडाउन को दो महीने बीत चुके हैं। दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन के कई ट्रायल चल रहे हैं, लेकिन इसके लिए दो बातों का ख्याल रखना बहुत जरूरी है। पहला, वैक्सीन सुरक्षित हो और दूसरा, वो 95-99 फीसदी प्रभावशाली होना चाहिए। किसी भी वैक्सीन को बनाने के लिए उसकी तीन चरणों में टेस्टिंग की जाती है। इसका पहला ट्रायल जानवरों पर किया जाता है। दूसरे टेस्टिंग में कम लोगों पर ट्रायल होता है और तीसरे चरण में इंसानों की बड़ी संख्या पर इसका ट्रायल किया जाता है।’
डा.मीणा के मुताबिक किसी वायरस की एक सीमा होती है। इंफेक्शन चालीस से पचास फीसदी होने पर शरीर खुद प्रोटेक्टिव एंटी बाडी तैयार करता है। मुझे लगता है कि एक-दो महीने में ये दौर पूरा हो जाएगा।
कब तक बन सकती है?
डॉ. मीणा ने बताया कि अब तक उन्होंने जितने भी रिसर्च पढ़े हैं, उन्हें देखने के बाद ऐसा नहीं लगता कि कोविड-19 का वैक्सीन छह महीने से पहले बन जाएगा। उन्हें लगता है कि इस साल के अंत से लेकर अगले साल की शुरुआत में वैक्सीन डेवलप की जा सकती है। वैक्सीन तैयार होने से पहले लॉकडाउन खोला भी जाता है तो लोगों को बाहर निकलते वक्त सोशल डिस्टेंसिंग, नियमित रूप से हाथ धोना और मास्क पहनने जैसी बातों का खास ख्याल रखना होगा, तभी आप कोरोना से जीत सकते हैं।
वैक्सीन बनने के बाद भी कई तरह की चुनौतियां हमारे सामने होंगी। वैक्सीन का प्रोडक्शन कितनी तेजी से हो रहा है और क्या वो गरीब लोगों तक पहुंच पा रहा है। इसका भी ध्यान रखना होगा। अगर एक व्यक्ति भी संक्रमित रह जाता है तो वायरस के फैलने का खतरा फिर मंडराने लगेगा।
कोरोना वायरस से पीड़ित होने के ये हैं लक्षण और बचाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत, ब्रिटेन और अमरीका समेत कोरोना वायरस कोविड-19 अब दुनिया के 150 से भी अधिक देशों में फैल गया है और इसके कारण तीन लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, के अनुसार दुनिया भर में इसके संक्रमण के 54 लाख से ज्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है। अमेरिका में ही मरने वालों का आंकड़ा 98 हजार के पार है।
कोरोना वायरस कोविड 19 क्या है और यह कैसे फैलता है? इससे बचने के लिए आप नियमित रूप से और अपने हाथ साबुन और पानी से अच्छे से धोएं।
सही तरीके से हाथ कैसे धोएं?
जब कोरोना वायरस से संक्रमित कोई व्यक्ति खांसता या छींकता है तो उसके थूक के बेहद बारीक कण हवा में फैलते हैं। इन कणों में कोरोना वायरस के विषाणु होते हैं। संक्रमित व्यक्ति के नजदीक जाने पर ये विषाणुयुक्त कण सांस के रास्ते आपके शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
कोरोना वायरस का बढ़ता खतरा, कैसे करें बचाव
अगर आप किसी ऐसी जगह को छूते हैं, जहां ये कण गिरे हैं और फिर उसके बाद उसी हाथ से अपनी आंख, नाक या मुंह को छूते हैं तो ये कण आपके शरीर में पहुंचते हैं। ऐसे में खांसते और छींकते वक्त टिश्यू का इस्तेमाल करना, बिना हाथ धोए अपने चेहरे को न छूना और संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचना इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
कोरोनो वायरस संक्रमण के लक्षण क्या हैं?
इंसान के शरीर में पहुंचने के बाद कोरोना वायरस उसके फेफड़ों में संक्रमण फैलाता है। इस कारण सबसे पहले बुखार, उसके बाद सूखी खांसी आती है। बाद में सांस लेने में समस्या हो सकती है। वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखना शुरू होने में औसतन पांच दिन लगते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ लोगों में इसके लक्षण बहुत बाद में भी देखने को मिल सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार वायरस के शरीर में पहुंचने और लक्षण दिखने के बीच 14 दिनों तक का समय हो सकता है। हालांकि कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि ये समय 24 दिनों तक का भी हो सकता है।
कोरोना वायरस उन लोगों के शरीर से अधिक फैलता है जिनमें इसके संक्रमण के लक्षण दिखाई देते हैं। लेकिन कई जानकार मानते हैं कि व्यक्ति को बीमार करने से पहले भी ये वायरस फैल सकता है। बीमारी के शुरुआती लक्षण सर्दी और फ्लू जैसे ही होते हैं, जिससे कोई आसानी से भ्रमित हो सकता है।
कितना घातक है कोरोना वायरस?
कोरोना वायरस के संक्रमण के आँकड़ों की तुलना में मरने वालों की संख्या को देखा जाए तो ये बेहद कम हैं। हालांकि इन आंकड़ों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन आंकड़ों की मानें तो संक्रमण होने पर मृत्यु की दर केवल एक से दो फीसदी हो सकती है। फिलहाल कई देशों में इससे संक्रमित हजारों लोगों का इलाज चल रहा है और मरने वालों का आंकड़ा बढ़ भी सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक अध्ययन बताता है कि छह फीसदी लोग इस वायरस के कारण गंभीर रूप से बीमार हुए। इनमें फेफड़े फेल होना, सेप्टिक शॉक, आॅर्गन फेल होना और मौत का जोखिम था। 14 फीसदी लोगों में संक्रमण के गंभीर लक्षण देखे गए। इनमें सांस लेने में दिक्कत और जल्दी-जल्दी सांस लेने जैसी समस्या हुई। अस्सी फीसदी लोगों में संक्रमण के मामूली लक्षण देखे गए, जैसे बुखार और खांसी। कइयों में इसके कारण निमोनिया भी देखा गया।
कोरोना वायरस संक्रमण के कारण बूढ़ों और पहले से ही सांस की बीमारी (अस्थमा) से परेशान लोगों, मधुमेह और हृदय रोग जैसी परेशानियों का सामना करने वालों के गंभीर रूप से बीमार होने की आशंका अधिक होती है।
कोरोना वायरस का इलाज इस बात पर आधारित होता है कि मरीज के शरीर को सांस लेने में मदद की जाए और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाए ताकि व्यक्ति का शरीर खुद वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाए। कोरोना वायरस का टीका बनाने का काम अभी चल रहा है। अगर आप किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो आपको कुछ दिनों के लिए खुद को दूसरों से दूर रहने की सलाह दी जा सकती है। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड ने कहा है कि जिन्हें लगता है कि वो संक्रमित हैं वो डॉक्टर, फार्मेसी या अस्पताल जाने से बचें और अपने इलाके में मौजूद स्वास्थ्य कर्मी से फोन पर या आॅनलाइन जानकारी लें। जो लोग दूसरे देशों की यात्रा कर के यूके लौटे हैं, उन्हें सलाह दी गई है कि वो कुछ दिनों के लिए खुद को दूसरों से अलग कर लें।