लूटे हुए चमन कहते हैं हुआ घोटाला, प्रतिष्ठित साहित्यकार आरती जायसवाल की कुछ बेहतरीन रचनाएं.....
(Arati Jiasawal)
लूटे हुए चमन कहते हैं हुआ घोटाला
सड़कों के गड्ढे कहते हैं
हुआ घोटाला।
गिरते हुए भवन कहते हैं
हुआ घोटाला।
बनते-बनते पुल ढहते हैं
हुआ घोटाला।
चीख़ती जिंदगियाँ कहती हैं
हुआ घोटाला।
लालच की नीयत साधे हैं
बालू से ईंटे बाँधे हैं,
सीमेंट में राख मिलवाई
सरिया भी पतली लगवाई
रोज दरकते दर कहते हैं
हुआ घोटाला।
सीवर में भी पाइप पतली
खुली नालियाँ संकरी गली
काम अधूरा,हुआ न पूरा
हुआ घोटाला।
सरकारी राशन बिकते बाज़ारों में
भ्रष्टाचारी घूमें महँगी कारों में,
भूखे पेट लोग रहते हैं
हुआ घोटाला।
कीटनाशक घोल भी पी गए
सबका जीवन स्वयं जी गए
सौंदर्यीकरण का धन है आता
उनका शीशमहल बन जाता,
बदहाली शहरों की कहती हुआ घोटाला।
गाँव भी न आदर्श बनाए
लेटे-बैठे-सोए खाएँ
'लालच के पंजों में फँसकर
राष्ट्रविकास का दम घुट जाए।'
न्याय सो रहा आँखे मूंदे,
अपराधी सब उछलें-कूदे
नन्हीं कलियाँ रहीं सिसकती
नोचे हुए बदन कहते हैं
हुआ घोटाला।
शिक्षा का तो हाल न पूछो,
खुद ही सीखो खुद ही बूझो
खुद से ही लिखो गाथाएँ
बढ़ते हुए 'ट्यूशन' कहते हैं
हुआ घोटाला।
स्वास्थ्य सुरक्षा मुँह की खाएँ
जीवित भी मुर्दा दिखलाएं ,
बिकी दवाई फिर बिक जाएँ
हारे-थके जीवन कहते हैं हुआ घोटाला।
सबने मिलकर रिश्वत खाई
रही ग़रीबी बनी बनाई
दया ,धर्म उन्हें कुछ न सुहाई
मानवता सब ने बिसराई,
लूटे हुए चमन कहते हैं
हुआ घोटाला।
बढ़ते जाओ पथिक!
जीवन पथ पर बढ़ते जाओ पथिक !
न खोने का भय हो न पाने की आशा ,
भ्रमित कभी न करने पायें तुमको आशा और निराशा
कर्म को ही तुम श्रेष्ठ मानकर चलते जाओ पथिक!
कहाँ कभी तुम रुक पाओगे ,
कौन तुम्हे रोकेगा ?
दीप प्रेम का आत्मज्ञान का ज्योतिर्मय कर
बढ़ोगे तो फिर कौन तुम्हे टोकेगा?
प्रेम प्रवाहित करते तुम बहते जाओ पथिक!
हर प्राणी की कल्याण कामना करना
मात्र प्रेम और शांति की राह पकड़ना
शांति आत्मसंतुष्टि बहुत पाओगे
इस अमूल्य निधि का ही वरण करते जाओ पथिक!
कब तक बैठे रहेंगे मौन हाथ पर हाथ धरे?
आओ!करें संघर्ष का एलान अब,
सभी अवांछनीयताओं व
गद्दारों के विरुद्ध।
एकजुट हों उखाड़ फेंकने को हों तत्पर
अनाचार के समस्त वृक्षों को समूल।
क्यों अटकलें लग जाती हैं जन- कल्याणकारी योजनाओं पर ?
क्यों जाति ,धर्म की जमीन पर
की जाती है वैमनस्यता की खेती,
कब तक कुत्सित राजनीति होगी ,
कब तक हम बनेंगे ईंधन ?
क्यों बनाये रहना चाहते हैं ,
कुछ माननीय सभी अव्यवस्थाओं को युगों-युगों तक चुनावी मुद्दा?
चलो आओ;आगे बढें ,खत्म कर दें
सभी गले पड़ी परेशानियों को
समाप्त कर दें -भ्रष्टाचार और स्वार्थ से उपजे सारे राजनीतिक कुचक्रों को ;
आओ कर्मयोद्धाओं! 'सङ्कल्प करो' कि तुम नहीं बनोगे किसी भ्रष्टाचार और मुनाफ़ाखोरी का हिस्सा,
लालच के पंजों से नहीं जकड़ोगे खुद को ,
सिर पर नहीं लादोगे पाप की गठरी,
निभाओगे अपना कर्त्तव्य सृष्टि,संसार,प्रकृति, दया,करुणा,मानवता,के प्रति रहोगे कर्त्तव्यनिष्ठ।
प्रतिबद्ध रहोगे 'धर्मरक्षा' हेतु।
आओ!लिख दें परिवर्त्तन का नया अध्याय ।
कुछ लोग मिलकर क्या कर लेंगे
ये सोचने वालों भूलो मत कि;
मुट्ठी भर लोग ने ही सदा इतिहास रचे हैं।
आरती जायसवाल
प्रतिष्ठित साहित्यकार, रायबरेली