लॉकडाउन में प्रकृति का बदला स्वरूप, समृद्ध, टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियों को अवसर देने वाले पर्यावरण का निर्माण जरूरी
जनसंदेश न्यूज़
चकिया ,चंदौली। हमारे जीवन में जैव-विविधता का काफी महत्व है। हमें एक ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है, जो जैव-विविधता में समृद्ध, टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियों के लिए हमें अवसर प्रदान कर सकें। जैव-विविधता के कमी होने से प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, सूखा और तूफान आदि आने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है। अतः हमारे लिए जैव-विविधता का संरक्षण बहुत जरूरी है।
लाखों विशिष्ट जैविक की कई प्रजातियों के रूप में पृथ्वी पर जीवन उपस्थित है और हमारा जीवन प्रकृति का अनुपम उपहार है। अतः पेड़-पौधे, अनेक प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, महासागर-पठार, समुद्र-नदियां इन सभी प्रकृति की देन का हमें संरक्षण करना चाहिए, क्योंकि यही हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए काम आती है। प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में जैव-विविधता का महत्व देखते हुए ही जैव-विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
जैव विविधता दिवस के महत्व पर पर्यावरण विद परशुराम सिंह कहते हैं कि उन्होंने अपने अब तक के जीवन काल में हजारों फलदार और छायादार पौधे लगाए हैं जो आज लोगों को जीवनदाई हवा देने के साथ ही छांव प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति अपना संतुलन स्वयं बनाती है। जिसके प्रमाण के लिए उत्तराखंड की त्रासदी को हम याद कर सकते हैं। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के चलते पूरे देश में एक साथ किए गए लॉकडाउन से प्रकृति ने अपना नया स्वरूप बदला है।
पारिस्थितिकी तंत्र में आए बदलाव पर चंद्रप्रभा रेंजर बृजेश पांडेय ने बताया कि व्यापक स्तर पर अभियान चलाकर पौधरोपण कराया जा रहा है। एग्रो फॉरेस्ट्री योजना के तहत किसानों से उनके खेतों के मेड़ो पर पौधरोपण कराया जा रहा है। जल संचयन, पुराने वन क्षेत्रों का विकास, वन मार्गों का सुदृढ़ीकरण, चेकडैम, मृदा बंधी, चरागाह का विकास, स्वायल वर्क, वृहद वृक्षारोपण भी कराया जा रहा है। कहा कि चकिया तहसील क्षेत्र के अर्जी खुर्द, बराँव हेतिमपुर और चकिया में बनाई गई ऑर्गेनिक नर्सरी में 14500 पौधे रोपित किए गए हैं। इसके अलावा आगामी जुलाई माह में काशी वन्य जीव प्रभाग में होने वाले व्यापक स्तर के पौधरोपण के लिए लगभग 15 लाख पौधों का लक्ष्य रखा गया है। जिसके लिए नर्सरियों में पौधे तैयार कर लिए गए।
कृषि विशेषज्ञ डॉ कपिल देव कहते हैं कि हाल ही में शोध और नए अध्ययन में विलुप्त हो चुकी पौधों और जीवो की प्रजातियां की चौका देने वाली संख्या सामने आई है। पिछले 250 वर्षों में पौधों की अब तक 500 से अधिक प्रजातियां धरती पर से विलुप्त हो चुकी है, वहीं जीवों की 217 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर जीवन पौधों पर निर्भर करता है जो हमें ऑक्सीजन और भोजन प्रदान करते हैं। पौधे विलुप्त होने से उन जीवो के विलुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है, जो उन पर निर्भर है इनमें मनुष्य भी शामिल है।
जैव विविधता का संरक्षण और उसका टिकाऊ उपयोग
विभिन्न प्रकार के जीवों की अपनी अलग-अलग भूमिका है, जो प्रकृति को संतुलित रखने तथा हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करने, तथा सतत् विकास के लिये संसाधन प्रदान करने में अपना योगदान करती है। जैव विविधता का वाणिज्यिक महत्व, भोजन, औषधियां, ईंधन, औद्योगिक कच्चा माल, रेशम, चमडा, ऊन आदि से हम सब परिचित हैं। इसके पारिस्थितिकी महत्व के रूप में खाद्य श्रृंखला, मृदा की उर्वरता को बनाये रखना, जैविक रूप से सड़ी-गली चीजों का निपटान, भू-क्षरण को रोकने, रेगिस्तान का प्रसार रोकने, प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाने एवं पारिस्थितिकी संतुलन बनाये रखने में के रूप में देखा जा सकती है।