लॉकडाउन में दर्शक हाथों-हाथ ले रहे सोशल मीडिया पर नाट्य प्रस्तुतियां

 


- देश के नामचीन कलाकारों ने की थियेटर फेस्टीवल में हिस्सेदारी


- अब लोकनाट्य डिजिटल लाइव थियेटर फेस्टीवल की है तैयारी


- प्रत्येक आपदा को संभावनाओं के दृष्टिकोण से अपनाना चाहिए



सुरोजीत चैटर्जी


वाराणसी। वैश्विक आपदा कोरोना की महामारी ने तमाम कार्यों के साथ-साथ रंगमंच को भी प्रभावित किया है। ऐसे में रंगकर्म की मंचीय प्रस्तुतियां कबतक ठप रहेंगी तय नहीं। यह संकट देखकर रंगकर्मियों ने भी अपनी प्रतिभा को गतिमान रखने के लिए सोशल मीडिया की राह पकड़ी है। इन दिनों तमाम शहरों के रंगकर्मी फेसबुक और यूट्यूब आदि विभिन्न स्तर पर आॅन लाइन कार्यक्रम कर रहे हैं। इसी क्रम में वाराणसी के दो युवा कलाकार सुमित श्रीवास्तव और उमेश भाटिया में ने पहल कर दशरूपक और नाइन लिंब्स के सहयोग से कई दिनों तक डिजिटल थियेटर फेस्टीवल चलाया। जिसमें देश के कई नामचीन कलाकारों ने प्रस्तुतियां दीं और कुछ लेक्चर सेशन आदि भी रहे। अब लोकनाट्य डिजिटल लाइव थियेटर फेस्टीवल की तैयारी है।




सुमित श्रीवास्तव कहते हैं कि यह वक्त की मांग है और वर्तमान परिस्थितियों में ऐसी राह जरूरी थी। समय और परिस्थिति के अनुसार खुद को बदलना आवश्यक है। यदि आगामी दो साल तक सोशल डिस्टेंसिंग जैसा माहौल रहा तो स्टेज पर प्रस्तुतियां नहीं होंगी। आर्टिस्ट अपनी कला को निष्क्रिय कैसे कर सकता है। युवा रंगकर्मी एवं लेखक ऋत्विक श्रीधर जोशी का मानना है कि प्रत्येक आपदा को संभावनाओं के दृष्टिकोण में अपनाना चाहिए। हालांकि सोशल मीडिया और रंगमंच की तुलना करना ही बेतुकी-सी बात लगती है। दशकों से रंगमंच असंख्य प्रतिभाओं को पोषण देता आया है। इसलिए वह प्रतिभाएं अब सोशल मीडिया का रुख करने के लिए बाध्य हैं।



ऋत्विक कहते हैं कि दरअसल सोशल मीडिया कंटेंट-फ्री मटेरियल पेश करने की सहूलियत देता है। दर्शकों तक उसकी पहुंच भी आसान है। सभी को इसमें हिस्सेदारी का मौका मिल रहा है। इसे फिलहाल किसी श्रेणी में रखना सही नहीं होगा। इस दौड़ में रंगकर्मी पीछे क्यों रहे, उन्हें ट्रेनिंग ही मिली हुई है नेतृत्व करने की। सोशल मीडिया पर यदि रंगकर्मी सक्रिय रहे तो वह पूरे समाज का नजरिया बदल सकता है। यह इस पर निर्भर है की वह तकनीकी ज्ञान और चेतना के स्तर पर कितना परिपक्व है।



युवा रंगकर्मी उमेश भाटिया और पूर्णिमा पांडेय का कहना है कि वक्त की मांग के साथ डिजिटल थियेटर कलाकारों में कुछ नया कर दिखाने की लालसा को लगातार बनाए रखने का प्रयास है। भले ही यह मंचीय सजीव प्रस्तुति की बराबरी न सके। तमाम आर्टिस्ट न सिर्फ में इसमें हिस्सा ले रहे हैं बल्कि इस पहल का स्वागत भी कर रहे हैं। डिजिटल फॉर्मेट में दर्शक 15 मिनट के परफॉर्मेंस को पसंद कर रहे हैं। उन व्यूवर्स में विद्यार्थी भी शामिल हैं। यह पहल सिनेमा कतई नहीं है। कैमरे के आगे आप नाटक कर रहे हैं जिसे दर्शक सजीव रूप में अपने घर पर बैठकर देख रहे हैं।


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