कभी पलकों में पली, कभी आंसू से भरी......पढ़िएं अंकिता की दो खूबसूरत रचनाएं
जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के कारण हर कोई घरों में कैद है। ऐसे में लोगों का ज्यादातर समय टीवी, मोबाइल के साथ ही किताबें पढ़ने में बीत रहा है। वहीं कई लोग ऐसे भी है, जो अपने अंदर की रचनात्मकता को संवारने में जुटे हुए है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग की बीए मॉस कम्युनिकेशन की छात्रा अंकिता भारती भी इन दिनों अपने अंदर की प्रतिभा को संवारने में जुटी हुई है और नई-नई कविताएं लिख रही है। अपने कविताओं में नारी स्वरूप को दर्शाने के साथ ही उनकी चुनौतियों को इंगित करने वाली अंकिता की प्रस्तुत हैं दो सुंदर रचनाएं.......
1. कभी पलकों में पली, कभी आंसू से भरी,
कभी फूलों की कली,कभी पर्वत सी खड़ी,
कभी श्रृंगार अनोखा, कभी रूप सलोना।।।
ओढ़े हर पल ज़िम्मेदारी की चूनर,
थकते ना कदम, जितने हो सितम,
ढलती जाती ढालों जिस रूप में।।।
पल पल बहती नदी की धार हैं वो,
दिल में लाखों अरमान लिए,
प्रेम का एक तूफान है वो।।।
खुदा का तोहफा नायाब हैं जो,
दुनिया जिसे ना समझ सके,
ऐसी अबूझ किताब हैं वो।।।
दिल में भर के दर्द कई,
आंखों से सब कह देती है,
कभी मां, बहन, बीवी कभी बन जाती बेटी हैं।।
नारी रूप समर्पण का,
बस मांगे स्नेह और सम्मान,
जीवनदायिनी नारी हक ही मांगे जीने का।।
मत मनाओ महिला दिवस,
बस कोख में उसको जीने दो,
पढ़ लिख आगे बढ़ने दो,
आज़ादी की उसको पर तो दो।।।
मत पूजो देवी की तरह पर,
दैत्यों की तरह मत नोचों उसे,
दुखों को हरने वाली हैं वो,
जीते जी ना जलाओ उसे।।।
मत मनाओ महिला दिवस पर,
स्वाभिमान को उसके ना डिगाओं कोई
मत करो छल, कपट और तिरस्कार,
कर दो ना बस इतना उपकार।।।
2. कहाँ से शुरु करू तुम्हें लिखना
कहां पे तुम्हे विराम दूँ।
अब तुम ही बताओ इन धड़कनों को
ठहराकर कहा आराम दूँ।।
जो सक-ए-मिजाज है तुम्हारा
एक दिन तो टूट ही जाएगा।
बार बार दिल समसीर पे रख कर
और कितने मैं इम्तिहान दूँ।।
अब तुम ही बताओ इन धड़कनो को....
गर टूटना ही है इस दिल को
एक दिन तो टूट ही जायेगा।
फिर मैं अपनी बदकिस्मती का
क्यों और किसी का नाम दूँ।।
जाओ तुम्हे आज़ाद किया
बस लौट के वापस मत आना।
अब बेवफाई का ये दाग-ए-दामन
किसको मैं इनाम दूँ।।
अब तुम ही बताओ इन धड़कनों को......
अंकिता भारती
शिक्षार्थी, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी