मुसहर बस्तियों में कब पहुंचेंगे जिम्मेदार, जनसंदेश ने की पड़ताल में सामने आया स्याह सच!
वनवासियों को सरकार से राहत का इंतजार
कचनार-राजातालाब मुसहरी बस्ती में अभी तक झांकने तक नहीं गये जनप्रतिनिधि
मजदूरी का जीवन यापन करने वाले गरीब परिवार तक रहे राह
तमाम परिवार झोपड़ी में रहने को हैं विवश, नहीं मिला पक्का मकान
शौचालय तक नहीं, विधवा पेंशन और रसोई गैस भी नहीं है मिला
तमाम परिवारों के अभी तक नहीं बने हैं गरीबी रेखा के राशन कार्ड
जनसंदेश टीम
वाराणसी। दिन-रविवार। समय-दोपहर के करीब डेढ़ बजे। ‘जनसंदेश टाइम्स’ की टीम जैसे ही आराजी लाइन ब्लाक के कचनार-राजातालाब स्थित उसरापट्टी के मुसहर बस्ती में पहुंची। बस्ती के लोगों ने टीम को घेर लिया। उनको लगा कि जैसे कोई सरकारी मशीनरी इस लॉकडाउन की अवधि में खाद्य सामग्री बांटने पहुंची हो। लेकिन जब उनको बताया गया कि वे लोग अखबार से जुड़े हैं और उनकी समस्या को शासन-प्रशासन तक पहुंचाने के लिए आए तो छूटते ही बस्ती के लोगों ने अपना दर्द बयां किया। कहा, जब से कोरोना वायरस के चलते घरों से निकलना बंद हुआ है और काम-धंधा भी ठप पड़ गया है।
बड़ी मुश्किल से दिन-रात कट रहे हैं। सर्वाधिक दिक्कत बच्चों के दूध का है। खाद्य सामग्री के लाले पड़े ही है। अभी तक इस बस्ती में न तो जनप्रतिनिधि ही झांकने आए और न ही सरकारी मशीनरी। राहत के नाम पर एक धेला तक उनको अभी तक नसीब नहीं हुआ है। ग्राम प्रधान तो फोन तक नहीं उठाते हैं। सरकारी दुकान से मिलने वाला अनाज तक अभी तक मिला है।
दो भागों में विभाजित बस्ती में करीब पांच सौ लोग रहते हैं। बस्ती के अधिकांश लोग झोपड़ी में रहने को विवश है। करीब 70-80 साल से यहां रह रहे हैं। लेकिन अब प्रधान जमीन को खाली कराने पर अमादा है। कुछेक को प्रधानमंत्री आवास मिला है, जो अभी बन रहा है।
ग्राम प्रधान खुद बनवा रहे हैं, लेकिन मानक के विपरीत। बस्ती की सविता ने बताया कि उनके हिस्से के आवास का आया पैसा प्रधान ने नहीं दिया। सुरेश वनवासी ने बताया कि अधिया पर खेती करते हैं। सरकारी खाद्यान्न अभी तक नहीं मिला। राशन की दुकान से अनाज भी प्रदान नहीं किया गया। जो घर में पहले से पड़ा है, वह अब समाप्त होने के कगार है। आने वाले दिनों में होने वाले संकट को सोच कर अभी से रूह कांप जाती है। बस्ती की चंदा ने बताया कि उसके पति की कुछ साल पहले मौत हो चुकी है। पांच पुत्र है, सभी छोटे हैं। एक विकलांग है। विधवा पेंशन तक नहीं मिलता। प्रधान सुनते ही नहीं। आवास तक नसीब नहीं है।
बस्ती की प्रीति, अंजली, शांति, मालती आदि ने बताया कि लकड़ी बीन कर खाना पकाते हैं। सविता, रीतु, नीतू, गीता, पूजा, संजू, मीना, गुंजा, पूनम, प्रेमा, बच्चो देवी, ज्योति, अनीता आदि ने बताया कि उनको अभी तक उज्ज्वला योजना के तहत रसोई गैस नहीं मिला है। जबकि मुनिया, सीता, प्रेमा, किरन, सोनी, केवला आदि ने बताया कि सिलिंडर तो मिला, लेकिन अब गैस नहीं है। सरकार ने मुफ्त में गैस देने की बात कहीं है, लेकिन नहीं मिल रहा।
बस्ती के राजू, श्यामलाल, मंगरू, नटई, दारा, सरंगा, मीरा, देवेंद्र आदि बताते हैं कि दादा-परदादा के जमाने से यहां रहते चले आ रहे हैं, लेकिन प्रधान अब जमीन खाली कराना चाहते हैं। ऐसे में हम जायेंगे कहां? राशन कार्ड तक नहीं बना है। पहले बना था, लेकिन प्रधान ने कटवा दिया। शांति देवी बताती है कि उनके तीन बच्चे मीरजापुर स्थित मायके में फंसे हैं। बस्ती की मुनिया, प्रभा, रीता, कलावती, पूजा, आरती, उर्मिला, गुंजा, सुनीता, सोमारू, मुन्ना, शकुंतला आदि का कहना है कि काम न होने से खाने के फांके की नौबत आ गई है। बस्ती के लोग किसी तरह समय काट रहे हैं। बस्ती के लोगों ने शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराते हुए खाद्यान्न उपलब्ध कराने की मांग की है।