पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा से सीधी बात -सच कहता था, सच कहेंगे
वक्त ने फंसाया है, मगर परेशान नहीं हूं,
हालातों से हार जाऊं वो इंसान नहीं हूं।
मुझे ये फिक्र नहीं, सर रहे-रहे ना रहे,
सच कहता था, सच कहेंगे इंसान वही हूं।
सच और साफगोई के हिमायती बाबू सिंह कुशवाहा की जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है। बसपा सरकार में यूपी के कद्दावर मंत्री रहे श्री कुशवाहा की खुद्दार जिंदगी किसी अफसाने से कम नहीं। समाज के जिन मूल्यों के लिए उन्होंने संघर्ष किया, उनमें वह तेवर आज भी बरकरार है।
मजबूत और परिपक्व नेता की तरह। बेकसूर होते हुए भी चार साल तक सलाखों में रहने वाले बाबू सिंह में आज भी वह ताकत है जो हवा का रुख गरीबों की झोपड़ी और किसानों की खेतों की ओर मोड़कर ले जाने की ताकत रखते हैं। कहते हैं, मैं नीतियों का समर्थक रहा हूं, व्यक्तियों का नहीं।
नीतियों की सफाई अभी बहुत मामलों में होना बाकी है। मेरा नेता नीति है, विधान है, संविधान है, व्यक्ति नहीं। मेरा नेता पिछड़ा हुआ इंसान है। मेरा नेता नंगा-भूखा और उदास आदमी है। मेरा नेता गांवों में रहने वाले गरीब इंसान हैं। मैं नीतियों की चादर ओढ़े हुए हूं..जिसे न फटने दूंगा और न गंदा होने दूंगा...। श्री कुशवाहा की जिंदगी किसी अद्भुत कथा की तरह लगती है। अपने जज्बातों को काबू में रखकर आखिर जेल में कैसे बिताए इतने साल?