क्यों मनाया जाता है बसंत पंचमी का त्यौहार? आज मनाएं या कल, पढ़े...... 


जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। मां सरस्वती की अराधना के पर्व बसंत पंचमी का त्यौहार इस साल दो दिन पड़ रहा है। कई लोग आज तो कई लोग इसे कल मना रहे है। आइए हम आपको बताते है कि शास्त्र की दृष्टि से आज या कल बसंत पंचमी मनाना श्रेष्ठकर रहेगा।
वैसे इस साल बसंत पंचमी पर सिद्धि और सर्वार्थसद्धि योग जैसे दो शुभ मुहूर्त का संयोग बन रहा है। इस कारण पंडितों ने इसे वाग्दान, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों और अन्य शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना है। ज्योतिषविदों का मानना है कि गुरुवार को वसंत-पंचमी मनाना श्रेष्ठ और शास्त्र सम्मत होगा। 
इस वर्ष वसंत पंचमी को लेकर पंचाग भेद भी है। इसलिए कुछ जगहों पर ये पर्व  29 और कई जगह 30 जनवरी को मनेगा। विष्णुलोक के संस्थापक ज्योतिषविद विष्णु शर्मा और अधिकांश ज्योतिषविदों का मानना है कि उदयतिथि ही पूर्ण कालिक तिथि मानी जाती है। पंडित विष्णु शास्त्री के अनुसार, पंचमी तिथि बुधवार सुबह 10.46 से शुरू होगी, जो गुरुवार दोपहर 1.20 तक रहेगी। दोनों दिन पूर्वाह्न व्यापिनी तिथि रहेगी। 
क्यो मनाया जाता है बसंत पंचमी का त्यौहार
वर्ष भर में पड़ने वाली छह ऋतुओं (वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में वसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा माना गया है। पंचमी से वसंत ऋतु का आगमन हो जाता है, इसलिए यह ऋतु परिवर्तन का दिन भी है। इस दिन से प्राकृतिक सौन्दर्य निखरना शुरू हो जाता है। वसंत पंचमी को विशेष रूप से सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तुओं सबकुछ दिख रहा था, लेकिन उन्हें किसी चीज की कमी महसूस हो रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुंदर स्त्री के रूप में एक देवी प्रकट हुईं। 
उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। यह देवी थीं मां सरस्वती। मां सरस्वती ने जब वीणा बजाया तो संस्सार की हर चीज में स्वर आ गया। इसी से उनका नाम पड़ा देवी सरस्वती। यह दिन था बसंत पंचमी का। तब से देव लोक और मृत्युलोक में मां सरस्वती की पूजा होने लगी।


 


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