अनासक्ति ही जीवन की उपलब्धि:प्रो.त्रिपाठी
उपदेश
बीएचयू मालवीय भवन रविवासरीय गीता प्रवचन
जनसंदेश न्यूज
वाराणसी। इस संसार का जैसा स्वरूप शास्त्रों में वर्णित है और जैसा दृष्टिगोचर होता है तत्त्वज्ञान होने के पश्चात्् वैसा नहीं पाया जाता, ठीक वैसे ही जैसे आँख खुलने के पश्चात्् स्वप्न का संसार नहीं दिखाई देता'
यह बातें मालवीय भवन में रविवासरीय गीता प्रवचन के क्रम में रविवार को मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित प्रो.विद्याशंकर त्रिपाठी ने व्यक्त किए। वह गीता के पन्द्रहवें अध्याय पर बोलते हुए बताते हैं कि इस संसार की परम्परा कब से चली आ रही है और भविष्य में कब तक चलती रहेगी, इसका कोई पता नही है। अत: इस संसार रूपी वृृक्ष को वैराग्य रूपी शस्त्र से अच्छी तरह से छांटकर ही जीवन जीया जा सकता है।
आरम्भ में अतिथियों का स्वागत गीता समिति के सचिव प्रो.उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने किया। गीता के पन्द्रहवें अध्याय का वाचन सर्वेश कुमार मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रूद्रप्रकाश मलिक ने एवं संचालन संयुक्त सचिव डॉ.शरदिन्दु कुमार त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर प्रो.विद्याशंकर त्रिपाठी को गीता समिति द्वारा सम्मनित भी किया गया। प्रवचन में प्रो.मुकुट मणि त्रिपाठी, प्रो. लता शर्मा, प्रो. माया त्रिपाठी, डॉ. विभा दूबे, उर्मिला त्रिपाठी, डॉ. राय सहित भारी संख्या में विश्वविद्यालय के अध्यापक, कर्मचारी उवं छात्र गण उपस्थित थे।